2nd PUC Hindi Question and Answer Karnataka State Board Syllabus
2nd PUC Hindi Chapter 11
Rahim Ke Dohe
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भावार्थ : Rahim ke dohe
Question 1:
रहिमन विद्या और बुद्धि का महत्व क्या है, और वह किस प्रकार के मनुष्य को धरती पर निरर्थक मानते हैं?
Answer:
रहीम इस दोहे में यह बताते हैं कि विद्या और बुद्धि का महत्व बहुत अधिक है। जो व्यक्ति विद्या से वंचित होता है, जो धर्म और अच्छे कार्यों से दूर रहता है, और जिसने जीवन में कोई सफलता नहीं पाई, वह धरती पर एक बोझ की तरह है। ऐसे व्यक्ति को बिना पूंछ और सींग वाले जानवर की तरह निरर्थक मानते हैं।
Question 2:
रहिमन पानी के बारे में क्या संदेश देते हैं, और इसका क्या महत्व है?
Answer:
रहीम इस दोहे में पानी शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में करते हैं। पानी का मतलब मनुष्य की प्रतिष्ठा, मोती की चमक और चूने का गीलापन है। रहीम का कहना है कि बिना प्रतिष्ठा, मनुष्य की पहचान नहीं बनती; मोती को उसकी चमक, और चूने को उसकी सफेदी और गीला रूप चाहिए। इसलिए प्रतिष्ठा, चमक और शुद्धता को बनाए रखना जरूरी है।
Question 3:
रहीम चिंता और चिता के बीच अंतर को किस प्रकार समझाते हैं?
Answer:
रहीम इस दोहे में चिंता और चिता की तुलना करते हुए बताते हैं कि चिता केवल एक बार शरीर को जलाती है, लेकिन चिंता जीवन भर मनुष्य को जलाती रहती है। चिता निर्जीव शरीर को जलाती है, जबकि चिंता जीवित व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान करती है, जो कि कहीं अधिक हानिकारक है।
Question 4:
रहीम कर्म और उसके परिणाम के बारे में क्या विचार व्यक्त करते हैं?
Answer:
रहीम इस दोहे में कर्म और उसके परिणाम के बारे में कहते हैं कि कर्म करना हमारे हाथ में है, लेकिन उसके परिणाम पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। हमें बस सही कार्य करते रहना चाहिए, और विश्वास रखना चाहिए कि अच्छे कार्यों का अच्छा फल मिलेगा। वे उदाहरण के रूप में शतरंज के पाँसे का उपयोग करते हैं, जिनके दांव हमारे हाथ में नहीं होते, फिर भी हम खेलते हैं।
Question 5:
भगवान की भक्ति और प्रेम के बारे में रहीम क्या कहते हैं?
Answer:
रहीम भगवान की भक्ति को लेकर कहते हैं कि प्रेम की गली बहुत संकरी होती है, जिसमें केवल एक ही व्यक्ति रह सकता है। अगर हम अपने अहंकार और ‘मैं’ में उलझे रहते हैं, तो भगवान की भक्ति नहीं मिल सकती। अगर हम भगवान को हर स्थान पर देखेंगे, तो वही हमारे भीतर समा जाएंगे।
Question 6:
रहीम बिना सोचे-समझे बोलने के बारे में क्या सिखाते हैं?
Answer:
रहीम इस दोहे में हमें सिखाते हैं कि बिना सोच-समझे बोलना हानिकारक होता है। वे जीभ के उदाहरण से बताते हैं कि जीभ बिना सोचे कुछ भी बोल देती है, लेकिन इसका परिणाम हमारे शरीर को भुगतना पड़ता है। इसलिए हमें अपनी बातें सोच-समझ कर करनी चाहिए, ताकि किसी को नुकसान न हो।
Question 7:
रहीम छोटे आकार और बड़े आकार के महत्व को किस प्रकार समझाते हैं?
Answer:
रहीम इस दोहे में यह बताते हैं कि आकार से कोई फर्क नहीं पड़ता। सागर भले ही बड़ा हो, लेकिन वह एक इंसान की प्यास भी नहीं बुझा सकता। इसके विपरीत, एक छोटा तालाब जिसमें कीचड़ हो, वह छोटे-बड़े सभी जीवों की प्यास बुझा सकता है। इसलिए कभी-कभी छोटा ही बड़ा काम करता है।
Question 8:
रहीम साधना के महत्व को किस प्रकार समझाते हैं?
Answer:
रहीम इस दोहे में साधना की महिमा बताते हैं। उनका कहना है कि अगर किसी एक व्यक्ति ने सही साधना प्राप्त कर ली हो, तो वह दूसरों को भी सिखा सकता है। जैसे एक पेड़ की जड़ को पानी दिया जाए, तो वह पानी पूरे पेड़ में फैलकर उसे संजीवनी देता है। साधना की जड़ को समझकर पूरे जीवन में लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर: लिखिए: Rahim ke dohe
Question 1:
बुद्धिहीन व्यक्ति को किससे तुलना की जाती है?
Answer:
बुद्धिहीन व्यक्ति को बिना पूंछ और सींग वाले जानवर के समान माना जाता है।
Question 2:
किस चीज़ के बिना इंसान का जीवन निरर्थक होता है?
Answer:
मानवता और सम्मान के बिना इंसान का जीवन निरर्थक होता है।
Question 3:
चिता किसे जलाती है?
Answer:
चिता केवल निर्जीव शरीर को जलाती है।
Question 4:
कर्म के परिणाम का निर्धारण कौन करता है?
Answer:
कर्म के परिणाम का निर्धारण ईश्वर करते हैं।
Question 5:
प्रेम के मार्ग के बारे में क्या कहा गया है?
Answer:
प्रेम का मार्ग संकीर्ण और कठिन है।
Question 6:
रहीम किसे बावरी बताते हैं?
Answer:
रहीम जीभ को बावरी (अविवेकपूर्ण) कहते हैं।
Question 7:
रहीम किसे श्रेष्ठ मानते हैं?
Answer:
रहीम छोटे जलाशयों को श्रेष्ठ मानते हैं।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: लिखिए: Rahim ke dohe
Question 1:
रहीम ने मनुष्य की प्रतिष्ठा के बारे में क्या उपदेश दिया है?
Answer:
रहीम इस दोहे में ‘पानी’ शब्द का उपयोग विभिन्न अर्थों में करते हैं। पानी का मतलब है मनुष्य की प्रतिष्ठा, मोती की चमक, और चूने का गीलापन और सफेदी। रहीम का कहना है कि मनुष्य को अपनी इज्जत बनाए रखनी चाहिए, क्योंकि बिना प्रतिष्ठा वह अपनी पहचान खो बैठता है। जैसे मोती को चमक और चूने को सफेदी की आवश्यकता है, वैसे ही मनुष्य को अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करनी चाहिए।
Question 2:
रहीम ने चिता और चिंता के बीच अंतर को किस प्रकार व्यक्त किया है?
Answer:
रहीम बताते हैं कि चिंता जीवन के लिए अत्यधिक हानिकारक है। चिता तो एक बार ही शरीर को जलाती है, लेकिन चिंता जीवन भर मनुष्य को मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान करती रहती है। यह हमारे शरीर और मस्तिष्क के लिए ज्यादा खतरनाक साबित होती है, इसलिये यह चिता से भी बुरी है।
Question 3:
कर्म और उसके परिणाम को लेकर रहीम का क्या दृष्टिकोण है?
Answer:
रहीम इस दोहे में बताते हैं कि कर्म करना हमारे हाथ में है, लेकिन इसके परिणाम भगवान के हाथ में होते हैं। हमें केवल अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए और विश्वास रखना चाहिए कि अच्छे कार्यों का अच्छा परिणाम होगा। उनका उदाहरण शतरंज के खेल से है, जहाँ पाँसे हमारे हाथ में होते हैं, लेकिन दाँव का निर्णय भगवान के हाथ में होता है, जैसा हम चाहते हैं वैसा हमेशा नहीं होता।
Question 4:
रहीम के अनुसार आकार और अहंकार के बारे में क्या विचार हैं?
Answer:
रहीम इस दोहे में आकार और अहंकार की तुलना करते हुए कहते हैं कि आकार का बड़ा होना कोई मायने नहीं रखता। सागर जितना बड़ा हो, वह एक इंसान की प्यास नहीं बुझा सकता, जबकि एक छोटा तालाब या कीचड़ से भरा जलाशय छोटे और बड़े सभी जीवों की प्यास बुझा सकता है। इसलिये अहंकार का कोई मूल्य नहीं है; कभी-कभी छोटा भी बड़ा काम कर सकता है।
Question 5:
वाणी को संयमित रखने का क्यों महत्व है?
Answer:
रहीम इस दोहे में हमें बतलाते हैं कि बिना सोच-समझे बोलने से बहुत नुकसान हो सकता है। जीभ बिन सोचे कुछ भी बोल देती है, जिससे कभी-कभी गुस्से का सामना करना पड़ता है। हमारी जीभ तो सुरक्षित रहती है, लेकिन शरीर के अन्य हिस्सों को परिणाम भुगतना पड़ता है। इसलिये हमें अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए और सोच-समझ कर बोलना चाहिए।
Question 6:
रहीम भगवान की भक्ति के बारे में क्या विचार रखते हैं?
Answer:
रहीम इस दोहे में परमात्मा की भक्ति को लेकर बताते हैं कि प्रेम का रास्ता संकीर्ण है, जिसमें केवल एक व्यक्ति ही प्रवेश कर सकता है। अगर हम खुद को ‘मैं’ और ‘मेरा’ में उलझाए रखेंगे, तो भगवान का साक्षात्कार नहीं हो सकता। लेकिन यदि हम हर जगह भगवान को ही देखेंगे, तो भगवान हमारे भीतर समा जाएंगे। भक्ति में अहंकार और स्वयं का अस्तित्व नहीं होना चाहिए।
III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए: Rahim ke dohe
Question 1:
रहीम ने पानी का उपयोग किस प्रकार किया है, और इसका क्या संदेश है?
Answer:
प्रसंग: यह दोहा रहीम के काव्य से लिया गया है।
व्याख्या: रहीम इस दोहे में ‘पानी’ शब्द का प्रयोग तीन अलग-अलग अर्थों में करते हैं। पानी से उनका अभिप्राय है—इज्जत, मोती की चमक, और चूने का गीलापन और सफेदी। रहीम कहते हैं कि मनुष्य को अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखना चाहिए, क्योंकि बिना प्रतिष्ठा के वह व्यक्ति, मनुष्य कहलाने के योग्य नहीं रहता। जैसे मोती की चमक और चूने की सफेदी जरूरी है, वैसे ही मनुष्य की इज्जत भी उसकी पहचान बनाती है। बिना इज्जत के, सब कुछ बेकार हो जाता है।
Question 2:
रहीम आकार और उपयोगिता के बारे में क्या संदेश देते हैं?
Answer:
प्रसंग: यह दोहा रहीम के काव्य से लिया गया है।
व्याख्या: रहीम इस दोहे के माध्यम से समझाते हैं कि आकार का बड़ा होना हमेशा महत्वपूर्ण नहीं होता। कभी-कभी छोटा आकार ही बड़े काम का साबित होता है। उदाहरण के तौर पर, सागर इतना विशाल है, लेकिन उसमें पानी का इतना अंश है कि वह एक भी इंसान की प्यास नहीं बुझा सकता। इसके मुकाबले, एक छोटा तालाब या कीचड़ से भरा जलाशय, जिसमें पानी बहुत अधिक नहीं है, छोटे और बड़े सभी जीवों की प्यास बुझा सकता है। इसलिए कभी-कभी छोटा आकार भी बड़ा प्रभाव डालता है।
रहीम के दोहे Rahim ke dohe Summary
1.एक व्यक्ति जो बिना ज्ञान के है, जो बिना चमक के दया करता है, और जो चूने जैसा बिना गीला है, वह बेकार है। इस दोहे का संदेश है कि हमें ऐसी चीजों से सावधान रहना चाहिए, क्योंकि बिना ज्ञान, बिना इज्जत और बिना सच्चाई के कुछ भी नहीं टिकता।
2.इस दोहे में रहीम कहते हैं कि मनुष्य को अपनी इज्जत और आत्म-सम्मान हमेशा बनाए रखना चाहिए। बिना आत्म-सम्मान के मनुष्य को मनुष्य कहना व्यर्थ है। जैसे सीप में पानी के बिना मोती नहीं चमकता, वैसे ही मनुष्य अपनी इज्जत के बिना कोई महत्व नहीं रखता।
3.रहीम इस दोहे में बताते हैं कि चिंता और तनाव हमारे स्वास्थ्य के लिए कितने हानिकारक हैं। जैसे आग एक मृत शरीर को जलाती है, वैसे ही चिंता हमारे जीवन को धीरे-धीरे खत्म करती जाती है। यह मानसिक और शारीरिक रूप से नुकसानदेह है।
4.रहीम इस दोहे में भगवान की महानता और हमारे कर्मों की अहमियत को बताते हैं। हमें अपने काम और कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से करना चाहिए और बाकी सब भगवान के हाथ में छोड़ देना चाहिए। जीवन के खेल में हमें लगता है कि हम पाँसे खेल रहे हैं, लेकिन असल खेल भगवान के हाथ में होता है।
5.रहीम कहते हैं कि प्रेम का मार्ग संकीर्ण होता है, इसमें केवल एक व्यक्ति ही जा सकता है। अगर हम ‘मैं’ और ‘मेरा’ में उलझे रहेंगे तो भगवान हमारे पास नहीं आ सकते। लेकिन अगर हम भगवान को ही सर्वत्र देखेंगे, तो वह हमारे भीतर समा जाएंगे।
6.रहीम इस दोहे में जीभ की लापरवाही को व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि हमारी जीभ में हड्डियाँ नहीं होती, इसलिए वह बिना सोचे-समझे हर बात बोल देती है, लेकिन इसका असर हमारे चेहरे पर पड़ता है। गुस्से में बोली गई बातें हमें ‘थप्पड़’ के रूप में सजा दिलवाती हैं।
7.रहीम इस दोहे में बड़े और छोटे आकार की चीजों की तुलना करते हुए कहते हैं कि समुद्र इतना विशाल है, लेकिन उसे गर्व क्यों है जब वह एक भी इंसान की प्यास नहीं बुझा सकता? इसके विपरीत, छोटे जलाशय जैसे तालाब और नदियाँ, छोटे और बड़े सभी जीवों की प्यास बुझा देती हैं। इस उदाहरण से वह यह संदेश देते हैं कि आकार का बड़ा होना जरूरी नहीं है, कभी-कभी छोटा भी अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
8.रहीम इस दोहे में उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जैसे पौधे की जड़ को पानी देने से पानी पूरे पौधे के हर अंग तक पहुँच जाता है, वैसे ही एक ज्ञानी और प्रशिक्षित व्यक्ति अपने ज्ञान को दूसरों तक पहुँचा सकता है। यदि हर कोई अपने-अपने तरीके से कार्य करने लगे तो किसी को भी कोई लाभ नहीं होगा।