1st PUC Hindi Question and Answer: Kabir das ke dohe
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Karnataka 1st PUC Hindi Textbook Answers—Reflections Chapter 14
Sharan Vachanamrut Questions and Answers, Notes, and Summary
1st PUC Hindi Chapter 14
Sharan Vachanamrut
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I. एक शब्द में उत्तर लिखिए: Sharan Vachanamrut
Question 1
कनक, कामिनी और माटी के बारे में लोगों की क्या राय थी?
Answer:
लोगों का मानना था कि कनक, कामिनी और माटी माया हैं, लेकिन साथ ही कुछ ने इन्हें माया नहीं भी माना है।
Question 2.
अल्लमप्रभु देव किस देवता के भक्त थे?
Answer:
अल्लमप्रभु देव के आराध्य देवता गुहेश्वर थे।
Question 3.
बसवेश्वर के अनुसार ज्ञान से क्या समाप्त होता है?
Answer:
बसवेश्वर के अनुसार ज्ञान से अज्ञान का नाश होता है।
Question 5.
बसवेश्वर के आराध्य देवता कौन थे?
Answer:
बसवेश्वर के आराध्य देवता का नाम कूडलसंगम देव था।
Question 6.
सत्य से किसका नाश होता है?
Answer:
सत्य से असत्य का नाश होता है।
Question 7.
पारस से किस चीज़ का परिवर्तन होता है?
Answer:
पारस से लोहा स्वर्ण में बदलता है।
Question 8.
पर्वत पर घर बनाने के बाद किससे भय नहीं होना चाहिए?
Answer:
पर्वत पर घर बसाने के बाद जंगली जानवरों से डरने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
Question 9.
बाजार में घर बनाने के बाद किससे भय नहीं होना चाहिए?
Answer:
बाजार में घर बनाने के बाद शोरगुल से डरने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
Question 10.
जगत में जन्म लेने के बाद किससे भय नहीं होना चाहिए?
Answer:
जगत में जन्म लेने के बाद निंदा और स्तुति से डरने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
अतिरिक्त प्रश्नः Sharan Vachanamrut
Question 11.
अल्लमप्रभु माया का वास्तविक अर्थ किस रूप में बताते हैं?
Answer:
अल्लमप्रभु माया का वास्तविक अर्थ इस प्रकार बताते हैं कि मन की इच्छाएँ ही माया का रूप हैं।
Question 12.
कूडलसंगम देव के शरणों के अनुभाव से क्या छूट गया?
Answer:
कूडलसंगम देव के शरणों के अनुभाव से भव छूट गया।
Question 13.
सागर के किनारे घर बसाने के बाद किससे भय नहीं होना चाहिए?
Answer:
सागर के किनारे घर बसाने के बाद लहरों से डरने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
Question 14.
अक्कमहादेवी की आराधना के देवता का नाम क्या है?
Answer:
अक्कमहादेवी के आराध्य देवता का नाम चन्नमल्लिकार्जुन है।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :Sharan Vachanamrut
Question 1.
अल्लमप्रभु देव ने माया के सम्बन्ध में क्या कहा है?
Answer:
अल्लमप्रभु देव ने माया के बारे में कहा है कि – लोग कनक को माया मानते भी हैं और नहीं भी। कामिनी या स्त्री को माया मानते भी हैं और नहीं भी। माटी को माया मानते भी हैं और नहीं भी। अतः मन के आगे जो चाह है, वही माया है।
Question 2.
कविता में बसवेश्वर के विचारों का क्या संदेश है?
Answer:
महात्मा बसवेश्वर यह संदेश देते हैं कि ज्ञान अज्ञान को दूर करता है, ज्योति अंधकार को समाप्त करती है, सत्य असत्य को नष्ट करता है, और पारस लोहा को सोने में बदलता है। इसी प्रकार, कूडलसंगम देव की शरण और उनके ज्ञान से मेरा सांसारिक मोह समाप्त हो गया।
Question 3.
अक्कमहादेवी के अनुसार भवसागर में कैसे जीना चाहिए?
Answer:
अक्कमहादेवी का कहना है कि पर्वतों पर घर बसाने के बाद जंगली जानवरों से डरने की आवश्यकता नहीं होती। सागर के किनारे घर बनाकर लहरों से भयभीत नहीं होना चाहिए। बाजार में रहने के दौरान शोर से डरने की कोई वजह नहीं है। वे कहती हैं कि, हे चन्नमल्लिकार्जुन! संसार में जन्म लेने के बाद निंदा और स्तुति से डरने की कोई बात नहीं है। हमें क्रोध से बचकर, शांत और समानभाव से जीने की कोशिश करनी चाहिए। यही असल में जीवन जीने का सही तरीका है।
अतिरिक्त प्रश्न: Sharan Vachanamrut
Question 4.
महात्मा बसवेश्वर का जीवन परिचय दीजिए।
Answer:
महात्मा बसवेश्वर का जन्म कर्नाटक के बिजापुर जिले के इंगळेश्वर-बागेवाड़ी अग्रहार में हुआ था। उनके पिता का नाम मादरस और माता का नाम मादलांबिका था। उनका परिवार शिव का उपासक था। महात्मा बसवेश्वर का जीवनकाल 1105 से 1167 तक माना जाता है। उन्होंने ‘कायक ही कैलास’ के सिद्धांत से शारीरिक श्रम को महत्त्व देते हुए सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कार्य किया।
III. संसदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए : Sharan Vachanamrut
Question 1.
कहा जाता है कि कनक माया है, लेकिन वह माया नहीं है; कामिनी माया है, लेकिन वह माया नहीं है; माटी माया है, लेकिन वह माया नहीं है। मन के आगे जो चाहत है, वही माया है, गुहेश्वर।
Answer:
प्रसंग: यह वचन हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘शरण वचनामृत’ काव्यपाठ से लिया गया है, जिसके रचनाकार अल्लमप्रभु हैं।
संदर्भ: इस वचन में अल्लमप्रभु मन की इच्छाओं को माया के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके अनुसार, मन की चाहत ही असली माया है।
स्पष्टीकरण: इस वचन में अल्लमप्रभु कहते हैं कि कुछ लोग कनक (सोना) को माया मानते हैं, जबकि कुछ लोग स्त्री को माया कहते हैं। माया को धोखा देने वाली, भ्रमित करने वाली और सांसारिक चीजों में उलझाने वाली शक्ति के रूप में माना जाता है। हालांकि, अल्लमप्रभु का मत है कि स्त्री या कनक माया नहीं हैं। कुछ लोग माटी (जमीन या संपत्ति) को माया मानते हैं, लेकिन वह भी माया नहीं है। असल में, मन की इच्छाएँ और चाहतें ही माया हैं, जो हमें भटका देती हैं।
Question 2.
ज्ञान से अज्ञान दूर होता है,
ज्योति से तमंध दूर होता है,
सत्य से असत्य दूर होता है,
पारस से लोहत्व दूर होता है,
आपके शरणों के अनुभाव से
मेरा भव छूट गया, कूडलसंगम देवा।
Answer:
प्रसंग: यह वचन ‘साहित्य वैभव’ पाठ्य पुस्तक के ‘शरण वचनामृत’ काव्यपाठ से लिया गया है, जिसके रचनाकार महात्मा बसवेश्वर हैं।
संदर्भ: इस वचन के माध्यम से महात्मा बसवेश्वर बताते हैं कि ज्ञान प्राप्त करने से अज्ञान का नाश होता है, जैसे ज्योति से अंधकार, सत्य से असत्य और पारस से लोहा सोने में बदल जाता है।
स्पष्टीकरण: महात्मा बसवेश्वर इस वचन में यह बताते हैं कि ज्ञान से अज्ञान का निवारण होता है, जैसे उजाले से अंधकार समाप्त होता है, सत्य से असत्य का नाश होता है, और पारस से लोहा सोने में परिवर्तित होता है। वे कहते हैं कि कूडलसंगम देव की शरण में जाने से उनका सांसारिक मोह और भवसागर से छुटकारा मिल गया है।
शरण वचनामृत – शरणों का परिचय: [Introduction to Sharanas] Sharan Vachanamrut
बारहवीं शती का वचन साहित्य कन्नड़ साहित्य के विकास में स्वर्णिम युग माना जाता है। इस काल में महात्मा बसवेश्वर ने आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से विचारों का प्रचार किया, और उन्होंने अनुभव मंडप की स्थापना की, जिसकी अध्यक्षता अल्लमप्रभु ने की। इस मंडप ने सभी मुमुक्षु और संतों को आकर्षित किया।
1. अल्लमप्रभु को बारहवीं शती के सर्वश्रेष्ठ शिवशरणों में स्थान दिया जाता है। वे अनुभव मंडप के पहले अध्यक्ष थे और उनके जीवन की गाथाएँ ‘हरिहर का प्रभुदेव रगळे’, चामरस के ‘प्रभुलिंगलीले’ और अन्य शिवशरणों के वचनों में मिलती हैं। अल्लमप्रभु कर्म, भक्ति और ज्ञान के महत्व को प्रतिपादित करते थे।
2. महात्मा बसवेश्व का जन्म कर्नाटक के बिजापुर जिले के इंगळेश्वर-बागेवाड़ी अग्रहार में हुआ था। उनका जीवनकाल 1105 से 1167 तक था। ‘कायक ही कैलास’ (शारीरिक श्रम ही पूजा है) के सिद्धांत से उन्होंने सामाजिक क्रांति की शुरुआत की और शारीरिक श्रम के माध्यम से जीवन यापन करने को बढ़ावा दिया।
3. अक्कमहादेवी को अनुभव मंडप की महिला शिवशरणियों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। वे शिमोगा जिले के उडतड़ी ग्राम में शिवभक्त माता-पिता के घर जन्मी थीं। उन्हें शिव दीक्षा प्राप्त करने के बाद, वे सदा श्रीशैल के चन्नमल्लिकार्जुन देव के कीर्तन और ध्यान में लीन रहती थीं।
वचनों का आशय:
प्रस्तुत वचनों में शरणों ने अपने-अपने अनुभवों को व्यक्त किया है। इन वचनों के माध्यम से जाति, लिंग और भेदभाव को समाप्त कर दिया गया और ईश्वर की भक्ति और निष्काम कर्म को प्रमुखता दी गई। इन वचनों में धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति की गूंज है।
वचनों का भावार्थ:
1. अल्लमप्रभु का वचन:
“कनक माया है, कनक माया नहीं,
कामिनी माया है, कामिनी माया नहीं,
माटी माया है, माटी माया नहीं,
मन के आगे जो चाह है, वही माया है, गुहेश्वर।”
भावार्थ:
अल्लमप्रभु इस वचन में बताते हैं कि कई लोग सोने, स्त्री और संपत्ति को माया मानते हैं, लेकिन असल माया वह है जो मन की इच्छाएँ और चेष्टाएँ हैं। यह माया ही हमें भ्रमित करती है।
शब्दार्थ:
1. कनक – सोना
2. माया – भ्रम, अज्ञान
3. कामिनी – स्त्री
2. महात्मा बसवेश्वर का वचन:
“ज्ञान से अज्ञान दूर होता है,
ज्योति से तमंध दूर होता है,
सत्य से असत्य दूर होता है,
पारस से लोहत्व दूर होता है,
आपके शरणों के अनुभाव से
मेरा भव छूट गया, कूडलसंगम देवा।”
भावार्थ:
महात्मा बसवेश्वर कहते हैं कि ज्ञान अज्ञान को, ज्योति अंधकार को, सत्य असत्य को, और पारस लोहा को सोने में परिवर्तित कर देता है। उनके अनुसार, कूडलसंगम देव की शरण में आने से उनका सांसारिक मोह समाप्त हो गया।
शब्दार्थ:
1. तमंध – अंधकार
2. पारस – स्पर्शमणि
3. अनुभाव – महिमा
4. भव – संसार
3. अक्कमहादेवी का वचन:
“पर्वत पर बसाकर घर, जंगली जानवरों से क्या डरना?
सागर किनारे बसाकर घर लहरों से क्या डरना?
हाट में बसाकर घर, शोरगुल से क्या डरना?
चन्नमल्लिकार्जुन सुनो,
जगत में जन्म लेने पर, स्तुति-निंदा से क्या डरना?
मन में क्रोध न करके समचित रहना चाहिए।”
भावार्थ:
अक्कमहादेवी कहती हैं कि हमें जीवन में कभी भी बाहरी डर से प्रभावित नहीं होना चाहिए। चाहे पर्वत पर घर हो, सागर के किनारे या हाट में, हमें हर हाल में समानभाव से जीना चाहिए। स्तुति और निंदा से न डरते हुए हमें शांतचित्त रहकर जीवन जीना चाहिए।
शरण वचनामृत [Sharan Vachanamrut]
Summary
शरण वचनामृत’ एक महत्वपूर्ण काव्य-ग्रंथ है जो बारहवीं शती के कन्नड़ संतों के वचन साहित्य पर आधारित है। इस ग्रंथ में महात्मा बसवेश्वर, अल्लमप्रभु और अक्कमहादेवी जैसे महान संतों के वचन शामिल हैं। इन वचनों में उनके जीवन के दर्शन, उनके विचार, और समाज में व्याप्त धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर उनके विचारों का विस्तार से उल्लेख किया गया है।
प्रमुख विषय:
1. अल्लमप्रभु के विचार
अल्लमप्रभु अपने वचनों में माया के बारे में कहते हैं कि सोना, स्त्री और माटी को लोग माया मानते हैं, लेकिन असल माया तो मन की इच्छाएँ हैं। मन की इच्छाएँ ही हमें भ्रमित करती हैं और हमें सांसारिक भटकाव में डालती हैं।
2. बसवेश्वर के विचार
महात्मा बसवेश्वर ने ज्ञान, ज्योति, सत्य और पारस के माध्यम से जीवन में सुधार की बात की। उनका मानना था कि ज्ञान अज्ञान को, ज्योति अंधकार को, सत्य असत्य को और पारस लोहा को स्वर्ण में बदल देता है। बसवेश्वर ने ‘कायक ही कैलास’ (शारीरिक श्रम ही पूजा है) के सिद्धांत को समाज में लागू करने का प्रयास किया। उनका उद्देश्य समाज में पापों से मुक्ति और आत्मज्ञान की प्राप्ति था।
3. अक्कमहादेवी के विचार
अक्कमहादेवी के अनुसार, जीवन में संतुलन और समानभाव से जीना चाहिए। उन्होंने कहा कि पर्वत, सागर या बाजार में घर बसाकर, हमें किसी भी डर या शोरगुल से प्रभावित नहीं होना चाहिए। साथ ही, जन्म लेने पर हमें स्तुति-निंदा से नहीं डरना चाहिए और हमेशा शांतचित्त रहना चाहिए।
उपसंहार:
‘शरण वचनामृत’ के वचनों में संतों के जीवन के अद्भुत दर्शन और उनके समाज में सुधार के प्रयासों को देखा जा सकता है। इन वचनों में धार्मिक, आध्यात्मिक, और सामाजिक बदलाव की गहरी समझ है। ये वचन न केवल भक्तिरस से ओतप्रोत हैं, बल्कि समाज में व्याप्त अन्याय, भेदभाव और अज्ञानता के खिलाफ एक क्रांति का प्रतीक भी हैं।
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