1st PUC Hindi Chapter 13

1st PUC Hindi  Question and Answer: Meerabai Ke Pad

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Karnataka 1st PUC Hindi Textbook Answers—Reflections Chapter 13

Meerabai Ke Pad Questions and Answers, Notes, and Summary

1st PUC Hindi Chapter 13

Meerabai Ke Pad

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I.एक शब्द या वाक्य में उत्तर लिखें: Meerabai Ke Pad

Question 1.
मीराबाई ने किसे अपना आराध्य माना?
Answer:
मीराबाई ने गिरिधर गोपाल को अपने आराध्य के रूप में स्वीकार किया।

Question 2.
मीराबाई ने किसके लिए जग छोडा ?
Answer:
मीराबाई ने श्री कृष्ण स्मरण के लिए जग छोडा ।

Question 3.
मीराबाई ने किसकी संगति में लोक-लाज का परित्याग किया?
Answer:
मीराबाई ने साधु-संतों की संगति में लोक-लाज का त्याग किया।

Question 4.
मीराबाई ने अपने कृष्ण प्रेम को कैसे सींचा?
Answer:
मीराबाई ने अपने कृष्ण प्रेम को जीवन के जल से सींचा।

Question 5.
विष का प्याला किसने भिजवाया था?
Answer:
विष का प्याला राणा ने भेजवाया था।

Question 6.
मीराबाई की लगन किससे जुड़ी है?
Answer:
मीराबाई की लगन श्रीकृष्ण के स्मरण में लगी हुई है।

Question 7.
श्री कृष्ण के चरण कमल कैसे है ?
Answer:
श्री कृष्ण के चरण कमल अविनासी है।

Question 8.
किस बात का घमंड नहीं करना चाहिए?
Answer:
शरीर का घमंड नहीं करना चाहिए।

Question 9.
यह संसार किसका खेल माना गया है?
Answer:
यह संसार पक्षियों के खेल जैसा है।

Question 10.
मीराबाई किस बंधन को समाप्त करने की प्रार्थना करती हैं?
Answer:
मीराबाई इस संसार के बंधनों को समाप्त करने की प्रार्थना करती हैं।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :Meerabai Ke Pad

Question 1.
मीराबाई की कृष्ण भक्ति का वर्णन कीजिए।
Answer:
मीराबाई का मानना था कि इस संसार में केवल गिरिधर गोपाल उनके अपने हैं। उन्होंने लोक-लाज, संसार, और अपने संबंधों को त्यागकर अपना मन श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया।

Question 2.
मीराबाई ने जीवन के सार तत्व को कैसे अपनाया?
Answer:
मीराबाई ने जीवन के सार तत्व को इस प्रकार प्रकट कराति है

Question 3.
भगवान की भक्ति में मन प्रसन्न हुआ, लेकिन संसार के दुख देखकर मन व्यथित हुआ।
Answer:
कहती है – जीवन की हर पल को पानी तरह सींचनकर श्री कृष्ण के प्रति अपना प्रेम बीज बोया था ।

Question 4.
मीराबाई ने जीवन की नश्वरता के संबंध में क्या कहा हैं ?
Answer:
मीराबाई ने जीवन की नश्वरता के संबंध में इस प्रकार अपना भाव व्यक्त करती है – इस शरीर नखर है, इस पर इतना अंहकार मत करना । एक दिन इसे मि ी में मिलजाना है।
यह संसार एक चिडिया की खेल की तरह है, श्याम होते ही उठ जाएगा। इसी तरह यह जीवन भी नश्वर है । एक दिन नष्ट हो जाएगा

Question 5.
मीराबाई संसारिक बन्धन से कों मुक्ति चाहित है ?
Answer:
मीराबाई इस संसारिक बन्धन से इसलिए मुक्ति चाहती है – कि मीरबाई भगवान कृष्ण से प्रार्थना करती है – हे मेरे प्रभु मै अबला आपकी दासो आपसे प्रार्थना करती हूँ, मुझे इस जन्मों के और इस संसार के भव बंधनों से मुक्ति चाहती हूँ ।
क्योंकि दुबारा इस जन्मों के माया-मोह के बन्धनों से हमेशा के लिए मुक्त होना चाहती हूँ।

III. संसदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :Meerabai Ke Pad

Question 1.
म्हारां री शिरीधर गोपाल दुसरा न कूयां ।
दुसरां न कावां साधां सकल लोक जूयों ।
भाया छडया बंधां छाड्या संगा सूयां ।
साधां संग बैठ लोक लाज खूया ।
भगत देख्यां रापी हायां जगत देख्यां रूयां ।

Answer:
संदर्भ : प्रस्तुत पदावली को मीराबाई के पद इस दोहे से लिया गया है। कवयित्री है, मीराबाई।
स्पष्टीकरण : मीराबाई कहती है – इस संसार में मेरा कोई नही मिर्फ गिरीधर गोपाल मेरे है । उनके बिना दुसरा कोई नही मेरा ।

फिर से कहती है इस संसार को त्यागा मैने, भाई, बंधुओ को छोडा है, और साधुओं के संग बैठ बैठकर लाज को भूला है मैने । भक्ति में रत रहकर मन सुःख पाया है । इस , दुःखी संसार को देखकर दुःख होता है । इस तरह कहती है।

मीराबाई के पद [Meerabai Ke Pad]

Summary

1st PUC Hindi Chapter 13 Meerabai Ke Pad
1st PUC Hindi Chapter 13 Meerabai Ke Pad

मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण की महान भक्त थीं। छोटी उम्र में विधवा हो जाने के बाद, उन्होंने अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया। उनका आध्यात्मिक प्रेम, विनम्रता और श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण अद्वितीय थे।

वह कहती हैं कि गिरीधर गोपाल ही उनके सब कुछ हैं, वही उनका जीवन हैं। अपने अनुभवों से वह संतों को बताती हैं कि उन्होंने श्रीकृष्ण के सिवा किसी और को नहीं देखा और उनके लिए उन्होंने सभी सांसारिक सुख-भोग छोड़ दिए। साधुओं के साथ रहकर उन्होंने अपनी लज्जा भी त्याग दी। श्रीकृष्ण के भक्तों को देखकर उन्हें गर्व महसूस होता है।

संसार के दुखों को देखकर मीराबाई व्यथित हो जाती हैं और उनके आंसुओं ने श्रीकृष्ण के प्रति उनके प्रेम की बेल को सींचा है। उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति का सार अपनाया और निरर्थक चीजों को त्याग दिया, जैसे दही से मक्खन निकालकर मट्ठे को छोड़ दिया जाता है।

उनके पति ने उन्हें विष भेजा, लेकिन मीराबाई ने उसे अमृत की तरह पी लिया, जो उन्हें श्रीकृष्ण के करीब ले गया। अब उनका हर कार्य श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित है, और उनके प्रति उनका प्रेम अटूट है।

श्रीकृष्ण के चरणों की भक्ति के लिए मीराबाई अपनी आत्मा को प्रेरित करती हैं। वह कहती हैं कि आकाश और पृथ्वी के बीच जो कुछ भी है, वह नाशवान है। पूजा-पाठ, तीर्थयात्रा, और काशी की यात्रा भी व्यर्थ हैं।

इस नश्वर शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। मानव जीवन ईश्वर की परीक्षा का खेल है, जो सुबह अस्तित्व में आता है और शाम को समाप्त हो जाता है, जैसे पक्षी का दैनिक जीवन।

केसरिया वस्त्र पहनना, साधु बनना, और सांसारिक मोह त्यागना सब दिखावे के लिए हैं। इन सबसे जीवन-मरण के चक्र से बचा नहीं जा सकता। मीराबाई कहती हैं, “हे श्याम सुंदर, मैं आपकी दासी हूं। मैंने सारे सांसारिक बंधनों को छोड़ दिया है और आपके दिव्य, शाश्वत चरणों में स्थायी आनंद पाने की कोशिश कर रही हूं।”

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