2nd PUC Hindi Question and Answer Karnataka State Board Syllabus
2nd PUC Hindi Chapter 9
Raidasbani
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भावार्थ: Raidasbani
संत रैदास ने प्रस्तुत पदों में भगवान के प्रति अपनी गहरी भक्ति और समर्पण का वर्णन किया है। वे स्वयं को भगवान के दास और उनके साथ एकरूप मानते हैं। रैदास ने भगवान को चंदन, दीपक, स्वामी आदि के रूप में स्वीकारते हुए अपने आपको उनके पानी, बाती और दास के रूप में दर्शाया है।
1. अब कैसे छूटै राम रट लगी
संत रैदास कहते हैं कि राम नाम की रट अब उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है, जिससे छुटकारा असंभव है। भगवान राम को चंदन मानते हुए वे कहते हैं कि मैं पानी की भांति उनके साथ घुलमिल गया हूँ, जिससे मेरे हर अंग में उनकी सुगंध समा गई है।
वे भगवान को वन और स्वयं को मोर कहते हैं, जो वन के बिना नहीं रह सकता। जैसे चकोर को चंद्रमा लुभाता है, वैसे ही भगवान उन्हें आकर्षित करते हैं। दीपक और बाती का उदाहरण देते हुए रैदास कहते हैं कि भगवान प्रकाश हैं और वे स्वयं उस प्रकाश को जलाने वाली बाती। इस तरह वे भगवान को स्वामी और स्वयं को उनका दास मानकर पूर्ण भक्ति में लीन हैं।
2. श्रम का महत्व
संत रैदास जीवन में परिश्रम के महत्व को उजागर करते हुए कहते हैं कि हर व्यक्ति को मेहनत कर ईमानदारी से अपना जीवन यापन करना चाहिए। परिश्रम का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता। वे बताते हैं कि सही तरीके से की गई मेहनत ही सफलता की कुंजी है। ईमानदारी से कमाया गया धन और परिश्रम से अर्जित सफलता हमेशा सुखद परिणाम लाती है।
3. आदर्श राज्य की कल्पना
संत रैदास ऐसे राज्य की कल्पना करते हैं जहाँ कोई भूखा न हो और सभी को भोजन मिले। वे ऐसी व्यवस्था चाहते हैं जहाँ अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, छोटे-बड़े का भेदभाव न हो। उनके आदर्श राज्य में समानता और सौहार्द का वातावरण हो, जिससे हर व्यक्ति संतुष्ट और खुशहाल जीवन व्यतीत कर सके।
रैदास की यह विचारधारा न केवल सामाजिक समानता की ओर प्रेरित करती है बल्कि परिश्रम और ईमानदारी का महत्व भी सिखाती है।
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर: लिखिए: Raidasbani
Question 1.
रैदास किसके नाम का जाप कर रहे हैं?
Answer:
रैदास राम के नाम का जाप कर रहे हैं।
Question 2.
रैदास के शरीर के प्रत्येक अंग में किसकी महक बस गई है?
Answer:
रैदास के शरीर के प्रत्येक अंग में चंदन की महक बस गई है।
Question 3.
चकोर पक्षी किसे निहारता रहता है?
Answer:
चकोर पक्षी चाँद को निहारता रहता है।
Question 4.
रैदास खुद को किसके सेवक मानते हैं?
Answer:
रैदास खुद को राम, अर्थात अपने प्रभु के सेवक मानते हैं।
Question 5.
रैदास जीवनयापन के लिए क्या करने की सलाह देते हैं?
Answer:
रैदास परिश्रम कर ईमानदारी से जीवनयापन करने की सलाह देते हैं।
Question 6.
रैदास के अनुसार कौन सा कार्य कभी व्यर्थ नहीं होता?
Answer:
रैदास के अनुसार ईमानदारी और नेक नीयत से कमाया गया धन कभी व्यर्थ नहीं जाता।
Question 7.
रैदास किस प्रकार के राज्य की कल्पना करते हैं?
Answer:
रैदास ऐसे राज्य की कल्पना करते हैं जहाँ सभी को भोजन उपलब्ध हो और किसी प्रकार का भेदभाव न हो।
II. निम्न लिखित प्रश्नों के उत्तर: लिखिए। Raidasbani
Question 1.
रैदास ने भगवान और भक्त के संबंध को कैसे वर्णित किया है?
Answer:
पहले पद का भावार्थ।
Question 2.
परिश्रम के महत्व के प्रति रैदास के क्या विचार है?
Answer:
दूसरे पद का भावार्थ।
Question 3.
रैदास ने किस प्रकार के राज्य का वर्णन किया है?
Answer:
तीसरे पद का भावार्थ।
III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए। Raidasbani
Question 1.
अब कैसे छूटै राम रट लागी।
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी
जाकी अंग-अंग बास समानी।
Answer:
उपरोक्त पंक्तियाँ संत रैदास की रचनाओं से ली गई हैं। इन पंक्तियों में रैदास भगवान राम के प्रति अपनी असीम भक्ति और समर्पण प्रकट करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान और भक्त एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते। राम के नाम का स्मरण उनके जीवन का हिस्सा बन चुका है, जिसे छोड़ पाना उनके लिए असंभव है। भगवान को चंदन और स्वयं को पानी मानते हुए वे कहते हैं कि चंदन की सुगंध की तरह प्रभु की उपस्थिति उनके हर अंग में बस चुकी है। भक्त और भगवान का यह मेल अटूट है और दोनों को अलग करना असंभव है।
रैदासबानी [ Raidasbani ] Summary
अब हे प्रभु! आप ही बताओ कि मैं आपके बिना कैसे जी सकता हूँ? हम दोनों एक ही हैं; एक-दूसरे के पूरक हैं। हे प्रभु! आप चंदन हैं और मैं पानी। जैसे पानी में घुलकर चंदन की खुशबू चारों ओर फैलती है, वैसे ही हम भी एक-दूसरे में समा गए हैं।
हे प्रभु! आप घने जंगल की तरह हैं और मैं मोर। जिस तरह मोर जंगल को छोड़ नहीं सकता, वैसे ही मैं भी आपसे अलग नहीं हो सकता। हे प्रभु! जैसे चकोर पक्षी चाँद की ओर खिंचता है, वैसे ही मैं भी आपकी ओर आकर्षित हूँ। प्रभु! आप दीपक की लौ हैं और मैं उसकी बाती, जो दिन-रात जलती रहती है।
हे प्रभु! आप मोती हैं और मैं वह धागा हूँ, जो मोती को पिरोता है। हमारे बीच ऐसा सुंदर संबंध है। हे प्रभु! आप स्वामी हैं और मैं आपका सेवक। भक्त रैदास की भक्ति इसी प्रकार से है।