2nd PUC Hindi Question and Answer – Surdas Ke Pad
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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers—Reflections Chapter 10
Surdas Ke Pad Questions and Answers, Notes, and Summary
2nd PUC Hindi Chapter 10
Surdas Ke Pad
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1. भावार्थ: Surdas Ke Pad
पहले पद में सूरदास गोपिकाओं और उद्धव के संवाद का वर्णन करते हैं। गोपिकाएँ स्वयं को अत्यंत सौभाग्यशाली मानती हैं क्योंकि उन्होंने कृष्ण के दर्शन किए हैं। वे अपने अनुभव को पुष्प और भ्रमर के प्रेम की तरह बताते हुए कहती हैं कि जैसे फूलों की खुशबू हवा में फैलती है, वैसे ही उनके रोम-रोम में आनंद की लहरें दौड़ गई हैं। उनका सौंदर्य भी अब उन्हें दर्पण में देखने के लिए प्रेरित करता है। उनके मुख पर प्रेम की आभा झलक रही है। सूरदास इस भाव को साझा करते हुए कहते हैं कि वे भी कृष्ण का सान्निध्य चाहते हैं ताकि उनके विरह का दुःख समाप्त हो और वे भी गोपिकाओं के समान आनंद और सुख का अनुभव कर सकें।
2. भावार्थ: Surdas Ke Pad
दूसरे पद में सूरदास ने कृष्ण के दिव्य रूप का चित्रण किया है। गोपिकाएँ वर्णन करती हैं कि उन्होंने कृष्ण को यमुना के किनारे मोर मुकुट धारण किए हुए देखा। उनके कानों में मकराकृति कुंडल झूम रहे थे, शरीर पर चंदन का लेप था, और उन्होंने पीतांबर धारण किया हुआ था। इस दिव्य रूप ने गोपिकाओं की आँखों को तृप्त कर दिया और उनके हृदय की जलन को शांत किया। प्रेम के अतिरेक में गोपिकाएँ अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करने में असमर्थ हैं। यमुना के तट पर खड़ी गोपिकाएँ लज्जा और प्रेम से अभिभूत होकर कृष्ण की ओर आकर्षित हैं। सूरदास कहते हैं कि कृष्ण अंतर्यामी हैं और गोपिकाओं के हृदय की स्थिति को भलीभाँति समझते हैं।
3. भावार्थ: Surdas Ke Pad
तीसरे पद में सूरदास ने गोपिकाओं के समर्पण और वात्सल्य प्रेम का वर्णन किया है। जब कृष्ण माखन चुराते हुए पकड़े जाते हैं, तो गोपिकाएँ नाराज़ होकर कहती हैं कि वे दिन-रात उन्हें सताते हैं और सारा माखन खा जाते हैं। वे कृष्ण का खेल खत्म करने की बात करती हैं और उन्हें ‘माखन चोर’ कहकर छेड़ती हैं। इस पर कान्हा मासूमियत से जवाब देते हैं कि उन्होंने माखन नहीं खाया, बल्कि उनके साथी खाकर उनका नाम लेते हैं। जब गोपिकाएँ कृष्ण के मुख पर माखन लगा हुआ देखती हैं और उनकी तुतलाती बातें सुनती हैं, तो उनका क्रोध ममता में बदल जाता है। गोपिकाएँ उन्हें गोद में उठा लेती हैं और उनका वात्सल्य उमड़ पड़ता है। सूरदास कहते हैं कि वे इस दृश्य पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं।
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर: दीजिए। Surdas Ke Pad
Question 1.
अपने आपको कौन सौभाग्यशाली मानती हैं?
Answer:
गोपिकाएँ स्वयं को अत्यंत सौभाग्यशाली मानती हैं।
Question 2.
गोपिकाएँ किससे संवाद कर रही हैं?
Answer:
गोपिकाएँ उद्धव से बातचीत कर रही हैं।
Question 3.
श्रीकृष्ण के कानों में किस आकृति के कुंडल हैं?
Answer:
श्रीकृष्ण के कानों में मकराकृति कुंडल हैं।
Question 4.
वाणी कहाँ अटक गई?
Answer:
वाणी गोपिकाओं के मुख में ही अटक गई।
Question 5.
कौन गोपिकाओं के हृदय की बात समझ सकते हैं?
Answer:
श्रीकृष्ण गोपिकाओं के हृदय की बात भलीभाँति समझ सकते हैं।
Question 6.
श्रीकृष्ण के अनुसार माखन किसने खाया?
Answer:
श्रीकृष्ण के अनुसार माखन उनके सखाओं ने खाया।
Question 7.
सूरदास किस दृश्य पर मुग्ध हो जाते हैं?
Answer:
सूरदास कान्हा को गोद में उठाए ग्वालिन की शोभा पर मुग्ध हो जाते हैं।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: लिखिएः। Surdas Ke Pad
Question 1.
गोपिकाएँ अपने आपको क्यों सौभाग्यशाली मानती हैं?
Answer:
सूरदास ने गोपिकाओं और उद्धव के बीच हुई बातचीत का वर्णन किया है। गोपिकाएँ स्वयं को सौभाग्यशाली मानती हैं क्योंकि उनकी आँखों को श्रीकृष्ण के दर्शन का अवसर मिला। वे अपने अनुभव की तुलना उस पुष्प से करती हैं, जिसे भ्रमर का प्रेम प्राप्त होता है। जैसे फूलों की सुगंध हवा में फैलती है, वैसे ही श्रीकृष्ण के दर्शन से उनके रोम-रोम में आनंद व्याप्त हो गया है।
वे कहती हैं कि अब उनका चेहरा दर्पण में देखने पर और भी सुंदर प्रतीत होता है, क्योंकि उसमें प्रेम की झलक दिखती है। सूरदास इस भाव को साझा करते हुए कहते हैं कि यदि उन्हें भी श्रीकृष्ण के दर्शन का सौभाग्य मिले, तो उनके विरह का दुःख समाप्त हो जाएगा और वे भी गोपिकाओं की भांति सुख और आनंद में डूब जाएँगे।
Question 2.
श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
Answer:
सूरदास ने श्रीकृष्ण के अद्भुत रूप-सौंदर्य का वर्णन किया है। गोपिकाएँ कहती हैं कि उन्होंने श्रीकृष्ण को यमुना किनारे देखा। उन्होंने मोर पंख का मुकुट धारण किया था, उनके कानों में मकराकृति कुंडल झूल रहे थे, शरीर पर चंदन का लेप था, और उन्होंने पीला वस्त्र पहना था।
उनके इस दिव्य रूप को देखकर गोपिकाओं की आँखें तृप्त हो गईं, जैसे उनकी प्यास बुझ गई हो। उनके हृदय की पीड़ा शांत हो गई और वे प्रेम के अतिरेक से वाणीहीन हो गईं। यमुना के तट पर खड़ी नारियाँ भी श्रीकृष्ण के आकर्षण से अभिभूत हो गईं। सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण अंतर्यामी हैं और गोपिकाओं के हृदय की भावना को भलीभाँति समझते हैं।
Question 3.
सूरदास ने माखन चोरी प्रसंग का किस प्रकार वर्णन किया है?
Answer:
सूरदास ने बालक कृष्ण के माखन चोरी प्रसंग को अत्यंत मोहक ढंग से प्रस्तुत किया है। एक बार, जब श्रीकृष्ण माखन चुराते हुए पकड़े गए, तो गोपिका ने नाराज़ होकर कहा कि तुमने दिन-रात हमें बहुत तंग किया है। सारा माखन, दूध और दही खा जाते हो। अब तुम्हारा यह खेल खत्म होगा।
कृष्ण ने मासूमियत से जवाब दिया, “मैंने माखन नहीं खाया, मेरे साथी सब खाकर चले गए और सारा दोष मुझ पर डाल दिया।” गोपिका ने जब उनके मुख पर माखन लगा देखा, तो वह मुस्कुरा उठी। उनकी प्यारी बातें सुनकर गोपिका का गुस्सा तुरंत शांत हो गया और वह उन्हें गोद में उठा लेती है। इस दृश्य की सरलता और स्नेह देखकर सूरदास इस अद्भुत प्रेम पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तत्पर हो जाते हैं।
III. संसदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए: Surdas Ke Pad
Question 1.
ऊघौ हम आजु भई बड़ – भागी जिन अँखियन तुम स्यांम बिलोके ते अँखियाँ हम लागी। जैसे सुमन बास लै आवत, पवन मधुप अनुरागी। अति आनंद होत है तैसै, अंग-अंग सुख रागी।
Answer:
सूरदास इस पद में गोपिकाओं और उद्धव के बीच संवाद का वर्णन कर रहे हैं। गोपिकाएँ स्वयं को अत्यंत भाग्यशाली मानती हैं क्योंकि उनकी आँखों को श्रीकृष्ण के दर्शन का सौभाग्य मिला। वे कहती हैं कि जैसे भ्रमर फूलों से प्रेम करता है और उनकी सुगंध हवा में फैल जाती है, वैसे ही श्रीकृष्ण के रूप और मधुरता ने उनके जीवन को आनंदमय बना दिया है।
श्रीकृष्ण के दर्शन से उनके शरीर के हर अंग में प्रसन्नता और उत्साह का संचार हुआ है। वे अपने आप को पूर्णतः आनंदमय और रोमांचित महसूस कर रही हैं। उन्हें दर्पण में अपना चेहरा देखना भी आनंदित करता है क्योंकि उसमें प्रेम की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। सूरदास इस अनुभूति को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि यदि उन्हें भी श्रीकृष्ण का ऐसा सान्निध्य मिले, तो उनके मन का विरह भी समाप्त हो जाएगा और वे भी गोपिकाओं की तरह सुख-समृद्धि में डूब जाएँगे।
सूरदास के पद [ Surdas Ke Pad ]
Summary
सूरदास के पद का सारांश:
इस कविता में सूरदास ने गोपियों के श्री कृष्ण के प्रति दिव्य प्रेम का वर्णन किया है। वे यह व्यक्त करती हैं कि जब वे श्री कृष्ण के पास होती हैं तो उन्हें कैसा अनुभव होता है। वे कृष्ण की ओर उसी तरह आकर्षित होती हैं जैसे मधुमक्खियाँ फूलों की ओर आकर्षित होती हैं। वे अपने आस-पास और अपने भीतर जीवन के सभी रूपों में सुंदरता देखती हैं।
वे इस बात को लेकर अत्यंत सौभाग्यशाली महसूस करती हैं कि उन्हें श्री कृष्ण के साथ समय बिताने का अवसर मिला है। इस प्रकार कवि का यह मानना है कि वह भी भगवान से अपनी एकाकीपन को दूर करने और शांति एवं सुख पाने के लिए प्रार्थना करें। वह भगवान श्री कृष्ण की सुंदरता का वर्णन करते हैं, जैसा कि गोपियाँ उन्हें देखती हैं। भगवान का दिव्य रूप इतना सुंदर है कि उनकी एक झलक ही उनकी भावनाओं को संतुष्ट कर देती है और उन्हें तृप्त कर देती है।
चूँकि भगवान सर्वज्ञ हैं, वह गोपियों के प्रति उनके प्रेम को समझते हैं। सूरदास यह भी बताते हैं कि कैसे गोपियाँ श्री कृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करती हैं, भले ही उन्होंने उन्हें माखन चुराने के रूप में कष्ट दिया हो। कवि इसे भगवान श्री कृष्ण के प्रति आध्यात्मिक प्रेम के रूप में प्रस्तुत करते हैं।