1st PUC Hindi Question and Answer Karnataka State Board Syllabus
1st PUC Hindi Chapter 3 Ninda ras
Ninda ras (निन्दा रस)
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I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :
Question 1.
धृतराष्ट्र की भुजाओं में कौनसा पुतला जकड गया था?
Answer:
धृतराष्ट्र की भुजाओं में भीम के पुतला जकड गया था।
Question 2.
पिछली रात ‘क’ ‘ग’ के साथ बैठकर क्या करता रहा?
Answer:
पिछली रात ‘क’ ‘ग’ के साथ बैठकर निंदा करता रहा।
Question 3.
कुछ लोग आदातन क्या बोलते हैं?
Answer:
प्रकृति के वशीभूत झूठ बोलते हैं।
Question 4.
लेखक के मित्र के पास दोषों का क्या हैं?
Answer:
लेखक के मित्र के पास दोषों का केटलाग हैं।
Question 5.
लेखक के मन में किसके प्रति मैल नही रहा? Answer:
लेखक के मन में अपने निन्दक मित्र के प्रति मैल नही रहा।
Question 6.
निन्दकों की जैसी एकाग्रता किन में दुर्लभ हैं? Answer:
भक्तों में निन्दकं की जैसी निन्दक दुर्लभ हैं।
Question 7.
मिशनरी निन्दक चौतीसों घंटे निन्दा करने मे किस भाव से लगे रहते हैं?
Answer: मिशनरी निन्दक चौबीसों घंटे निन्दा करने में बहुत पवित्र भाव में लगे रहते हैं।
Question 8.
निन्दा, निन्दा करनेवालों के लिए क्या होती हैं? Answer:
निन्दा, निन्दा करनेवालों के लिए टानिक होती हैं।
Question 9.
निन्दा का उद्गम किस से होता हैं?
Answer:
निन्दा का उद्गम हीनता और कमजोरी से होता हैं।
Question 10.
कौन बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता हैं?
Answer:
ईन्द्र बडा ईर्ष्यालु माना जाता हैं।
ii. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
Question 1.
धृतराष्ट्र का उल्लेख लेखक ने क्यों किया हैं?
Answer:
लेखक ने धृतराष्ट्र का उल्लेख इस लिए करते है कि जीवन में कई लोग ऐसे होते है, जो स्नेह तो करते हैं, मगर वह स्नेह प्राणाघाती होता हैं। बातों में स्नेह रस हपकता है, लेकिन मन में जहर पिला होता हैं। जैसे धृतराष्ट्र अपने भाइ के बेटों के साथ स्नेह को जानना चाहता है, लेकिन मन में ईष्या होती है कि यह राज्य का राजा अपने बेटे दुर्योधन ही बने। धृतराष्ट्र जैसे लोग गले लगते तो है, मगर अपनापन से ज्यादा ईर्ष्या, व द्वेष छिपा होता है इन में।
Question 2.
निन्दा की महिमा का वर्णन कीजिए।
Answer: निन्दा की ऐसी महिमा है कि निन्दकों को दूसरों की निन्दा किये बिना मन को शांति व खुशि नही मिलती। दो – चार निन्दकों को एक जगह बैठकर निन्दा में मग्न होते देखना, और तुलना कीजिए कि जैसे ईश्वर की भक्ति में रामधुन लगा हो। ऐसी एकाग्रता भक्तों में भी दुर्लभ हैं। संतों ने भी कहा है – आँगन कुटी छवाय’ निन्दको को अपने साथ रखना चाहिए।
Question 3.
“मिशनरी’ निन्दक से लेखक का क्या तात्पर्य हैं?
Answer:
लेखक जी कहते है मिशनरी निन्दको को मैने देखा हैं। उनका किसी से बैर नही, द्वेष नही। वे किसी का बुरा नही सोचते। पर चौबीसों घंटे वे निन्दा कर्म में बहुत पवित्र भाव से लगे रहते हैं। अविशय जो किसी विषय में आसक्त न हो, जो किसी का पक्षपात ना करता हो, इसी से मालूम होती है कि वे प्रसंग आने पर अपने आप की पगडी भी उसी आनंद से उछालते है, जिस आनंद से अन्य दुश्मन की। इस तरह निन्दक से लेखक का तात्पर्य हैं।
Question 4.
निन्दकों के संघ के बारे में लिखिए।
Answer:
ट्रेड युनियन के सि जमाने में निन्दको के संघ बन गये हैं। संघ के सदस्य जहाँ – तहाँ से खबरे लाते है और अपने संघ के प्रधान को सौंपते हैं। यह कच भाल हुआ। अब प्रधान उनका पक्का माल बनादेगा और सब सदस्यों को ‘बहुजन हिताय’ मुफ्त बाँटने के लिए दे देगा। यह पुरसत का लाभ होता हैं। जिनके पास कुछ और करने को नहीं होता, वे इसे बडे खूबी से करते
Question 5.
ईर्ष्या – द्वेष से प्रेरित निन्दकों की कैसी दशा होती हैं?
Answer:
ईर्ष्या – द्वेष मे प्रेरित से प्रेरित निन्दा भी होती हैं। इस प्रकार का निन्दा करने वाले बडे दुःखी होते हैं। ईर्ष्या – द्वेष से चौबीसों घंटे जलता हैं और निन्दा का जल छिडक्कर कुछ शांति अनुभव करता हैं। ऐसा निन्दक बडा दयनीय होता हैं। इन्हें कोई दंड देने की जरूरत नहीं हैं। वह स्वयं दण्डित होता हैं। इस तरह आप चैन से सोइए और वह जलन के कारण सो नहीं पाता। तो इस तरह होता है उनकी दशा।
Question 6.
निन्दा को पूँजी बनानेवालों के बारे में लेखक ने क्या कहा
Answer:
निन्दा कुछ निन्दा करनेवालों की पूजी होती हैं। कई लोगों की प्रतिष्टा हू दूसरों की कलंक या ओं के परायण पर अधारित होती हैं। बड़े रस विभोर होजर वे जिस – तिस की सत्य कल्पित कलंक कथा सुनाते हैं। और स्वयं को पूर्ण संत समझने की तृप्ति का अनुभव करते हैं। .
Question 7.
“निन्दा रस’ निबंध का आशय पने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
Answer:
निन्दा रस’ एक सुन्दर कलाकृति है। लोग एक दूसरे के प्रति ईष्या भाव से निन्दा करते हैं। कुछ लोग अपने स्वभाव वश अकारण ही निन्दा करने में सि लेते रहते है और कुछ लोग अपने आपको बड़ा और महान सिद्ध करने के लिए दूसरों की निन्दा करने में लगे रहते हैं। …… निन्दा का उद्गम ही हिनता और कमजोरी से होती हैं। वह दूसरों की निन्दा करके ऐसा अनुभव करता है कि वे नीच, तुच्छ है, और वह उन से अच्छा हैं। बड़ी लकीर को कुछ मिटाकर छोटी लकीर बड़ी बनती हैं। ज्यो – ज्यो कर्म कम होता जाता है, त्यो – त्यो निन्दा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती हैं। कठिन कर्म ही ईर्ष्या द्वेषऔर उनसे उत्पन्न निन्दा को भारता हैं।
iii. संदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए।
Question 1.
आ वेटा, तुझे कलेजे से लगा लूँ।
Answer:
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को निन्दा रस पाठ से लिया गया हैं। इस पाठ के लेखक है हरिशंकर परसाई जी। स्पष्टीकरण : धृतराष्ट्र पने भाई के बेटों के साथ स्नेह तो जताना चाहता है। लेकिन मन में ईर्ष्या होती हैं। यह राज्य का राजा अपने बेटे दुर्योधन बने, लेकिन बता नही सकता। अंधे धृतराष्ट्र ने मन में भीम के प्रति ईष्या लेकर पुछता है – कहाँ है भीम? आ बेटा, तुझे कलेजा से लगा लूँ।
Question 2.
अभी सुबह की गाड़ी से उतरा और एकदम तुमसे मिलने चला आया।
Answer:
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को ‘निन्दा रस’ पाठ से लिया गया हैं। इस पाठ को लेखक है – हरिशंकर परसाई जी. स्पष्टीकरण : लेखक जी के दोस्त अभिनव में. पूरा था। मुह से मिलने जी हर्षोल्लास के सारे चिन्ह दिख रहे थे। बस आँखो आँसू नहीं आये। आते ही आत्मीयता की जकड, नयनों से छलकता वह स्नेह और ह स्नेहभरी वाणी में बोलने लगा – ‘अभी सुबह की गाड़ी से उतरा और एक तुमसे मिलने चला आया’ वह तो कल ही आया था। लेकिन हाल झूठ बोला।
Question 3.
कुछ लोग बड़े निर्दोष मिथ्यवादी होते हैं।
Answer:
संदर्भ : प्रस्तुत स्पष्टीकरण : लेखक के दोस्त कल ही आया है, लेकिन आधे ही झूठ बोला कि वह अभी सुबह की गाड़ी से उतरा और एकदम तुमसे मिलने चला आया। इस झूठ मे कोई लाभ न रहा हो। लेकिन कुछ लोग बड़े निर्दोष मेथ्यवादी होते हैं।
Question 4.
दा का उद्गम ही हिनता और कमजोरी से होता हैं।
Answer:
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को ‘निन्दा रस’ पाठ से लिया गया हैं। इस जात के लेखक है हरिशंकर परसाई जी। स्पष्टीकरण : मनुष्य अपनी हीनता से दब्ता हैं। वह दूसरों की ‘: वे सारे नीच है, और वह उन से अच्छा कोटी र बडी बनाती हैं। इस तरह लेखक कहते है कि निन्दा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता
Question 5.
ज्यो – ज्यों कर्म क्षीण होता जाता हैं त्यो – त्यों निन्दा प्रवृत्ति बढ़ती जाती हैं।
Answer:
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को निन्दा रस पाठ से लिया गया हैं। इस पाठ का लेखक है – हरिशंकर परसाई जी। स्पष्टीकरण : निन्दा करनेवाले लोग दूसरों को निन्दा करके ऐसा अनुभव करते है कि वे सब तुच्छ है सिर्फ वही अच्छे हैं। पास कुछ और करने के कोई काम तो नही होता। ज्यों – ज्यों कर्म क्षीण होता जाता हैं, त्यो – त्यो निन्दा की प्रकृति बढ़ती जाती हैं।
iv. कोष्टक मे दिए गए उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिए।
1. सुबह चाय पीकर अखबार देख रहा था कि वे…. की तरह कमरे में घुसे।
2. छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करे, तो…. ही आगे बढ़ाना चाहिए।
3. निन्दा का ऐसा ही …… अँधेरा होता हैं।
4. ……………. से प्रेरित निन्दा भी होती हैं।
5. निन्दा कुछ लोगों की ……………. होती हैं।
Answer:
1. तुफान
2. पुतला
3. भेद – नाशक
4. ईष्या – द्वेष
5. पूँजी
v. वाक्य शुद्ध कीजिए।
Question 1.
ऐसी मौके पर हम अक्सर पने पुतले को अंधकार मे दे देते हैं।
Answer:
ऐसी मौके पर हम अक्सर अपने पुतले को अंधकार में दे देते हैं।
Question 2.
पर वह मेरी दोस्त अभिनय में पूरा हैं।
Answer:
पर वह मेरे दोस्त अभिनय में पूरा हैं।
Question 3.
निन्दा का ऐसी ही महिमा हैं।
Answer:
निन्दा का ऐसा ही महिमा हैं।
Question 4.
आपके बारे में मुझसे कोई भी बुरी नही कहता।
Answer:
आपके बारे में मुझसे कोई भी बुरा नही कहता।।
Question 5.
सूरदास ने इसलिए “निन्दा सब्द रसाल’ कही हैं।
Answer: सूरदास ने इसलिए ‘निन्दा सब्द रसाल’ कहा हैं।
vi. अन्य लिंग रूप लिखिए।
1. पुतला – पुतली
2. मजदूर – मजदूरिन
3. बेटा – बेटी
4. पति – पत्नी
5. स्त्री – पुरुष
vii. अन्य वचन रूप लिखिए।
1. भुजा – भुजाए
2. कथा – कथाए
3. दुश्मन – दुश्मन
4. घंटा – घंटाए
5. कमरा – कमरें
6. कविता – कविताए
7. लकीर – लकीरें
Ninda ras Summary
हरिशंकर परसाई ने इस व्यंग्य रचना में समाज में फैले अज्ञान, अहंकार, स्वार्थ, और धोखे का तीखा खंडन किया है। उनकी रचनाओं में व्यंग्य का पैनापन और गहराई होती है, जो समाज की विभिन्न विसंगतियों पर प्रहार करती है। इस लेख में लेखक ने निन्दा को नवरसों के समान एक रस मानते हुए उसकी महिमा का वर्णन किया है। उनका मानना है कि निन्दा रस में हर व्यक्ति आनंदपूर्वक डुबकियाँ लगाता है और इसे जीवन का अहम हिस्सा मानता है।
लेखक ने एक प्रसंग में अपने एक मित्र का उल्लेख किया है, जो बिना सूचना दिए उनके घर आ जाता है और घंटों तक अन्य लोगों के बारे में नकारात्मक बातें करता रहता है। लेखक के लिए वे लोग अजनबी थे, फिर भी वह मित्र की निन्दा सुनते रहते हैं। यह मित्र एक विचित्र व्यक्ति है, जिसके पास परिचितों के दोषों का भंडार है, और वह हर किसी के सामने दूसरों की बुराई करने में आनंद लेता है। कई लोग उसकी निन्दा से उत्पन्न रस का आनंद लेते हैं।
लेखक सुझाव देते हैं कि यदि चार-पाँच निन्दकों को एक जगह बैठाया जाए, तो उनकी टीका-टिप्पणी सुनने लायक होती है। वे इतनी तल्लीनता और मजेदार भाषा में दूसरों की निन्दा करते हैं कि कोई भी व्यक्ति उस सभा को छोड़ने का नाम नहीं लेता। निन्दा करना उनके लिए एक टॉनिक की तरह है, जो उनकी उम्र और ताकत को बढ़ाता है।
निन्दकों के भी संघ होते हैं, जिनके अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव आदि पदाधिकारी होते हैं। ये लोग अपने काम के प्रति बेहद समर्पित होते हैं और निन्दा को एक महत्वपूर्ण कार्य मानते हैं।
लेखक बताते हैं कि जो लोग हीनता और कमजोरी के शिकार होते हैं, वे ही दूसरों की निन्दा करते हैं। भले ही इससे उन्हें कोई प्रत्यक्ष लाभ न हो, लेकिन निन्दा करने में उन्हें बड़ा सुख और संतोष मिलता है।
निन्दा की महिमा अपार है और इसे कम नहीं आँकना चाहिए। महात्मा सूरदास जी के शब्दों में, ‘निन्दा सबद रसाल’ अर्थात् निन्दा करना मीठे आम का स्वाद लेने के समान है।
लेखक अंत में कहते हैं कि निन्दकों के ‘धृतराष्ट्र आलिंगन’ से बचना बहुत कठिन है, और केवल कोई चतुर व्यक्ति ही उनके जाल से बच सकता है।
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