1st PUC Hindi Chapter 20

1st PUC Hindi Question and Answer Karnataka State Board Syllabus

1st PUC Hindi Chapter 20 

Pratibhaa Ka Mool Bindu 

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I. एक शब्दा में उत्तर लिखिए :Pratibhaa ka Mool Bindu

Question 1:
कवि प्रतिभा से क्या पूछते हैं?
Answer:
कवि प्रतिभा से पूछते हैं, “तेरा जन्म कहाँ हुआ?”

Question 2:
कवि ने दिवास्वप्न की रानी किसे कहा है?
Answer:
कवि ने प्रतिभा को दिवास्वप्न की रानी कहा है।

Question 3:
शिल्पी ने किसकी ओर संकेत किया है?
Answer:
शिल्पी ने मिट्टी के लौंदे की ओर संकेत किया है।

Question 4:
गायिका क्या कह गई?
Answer:
गायिका कह गई, “क्या तूने दिव्य स्वर की मदिरा पी है?”

Question 5:
प्रतिभा कहाँ बसती है?
Answer:
प्रतिभा यातना, निरंतर कष्ट सहन की ताकत, संघर्षरत साधक और असिधारा व्रत में बसती है।

Question 6:
‘प्रतिभा का मूल बिन्दु’ कविता के कवि का नाम लिखिए।
Answer:
‘प्रतिभा का मूल बिन्दु’ कविता के कवि डॉ. प्रभाकर माचवे हैं।

अतिरिक्त प्रश्नःPratibhaa ka Mool Bindu

Question 7:
चित्रकार ने किन चीजों को समेटा है?
Answer:
चित्रकार ने फलक, रंग और कूची को समेटा है।

Question 8:
प्रतिभा का मूल किसमें छिपा है?
Answer:
प्रतिभा का मूल लगातार कष्ट और पीड़ा सहने की शक्ति में छिपा है।

Question 9.
क्या जानने के लिए हम सब प्यासे हैं?
Answer:
प्रतिभा तुम कहाँ रहती हो? यह जानने के लिए हम सब प्यासे हैं।

Question 10:
किसका स्थान असिधारा व्रत में है?
Answer:
असिधारा व्रत में प्रतिभा का स्थान है।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :Pratibhaa ka Mool Bindu

Question 1:
कवि प्रतिभा का मूल कहाँ-कहाँ खोजते हैं?

Answer:
कवि प्रतिभा के मूल को हर जगह तलाशते हैं। वे इसे महलों की दीवारों में, नरम गलीचों पर, गुलाब की क्यारियों में, बुजुर्गों की चिंताओं में और बच्चों की मासूम हंसी में खोजते हैं। इसके अलावा, वे इसे चित्रकार की कूची, शिल्पकार की रचना, और गायिका के सुरों में भी ढूंढते हैं। प्रतिभा को समझने के लिए वे जगह-जगह भटकते रहते हैं।

Question 2:
कवि माचवे जी के अनुसार प्रतिभा के गुण क्या हैं?

Answer:
कवि माचवे जी के अनुसार, प्रतिभा अद्भुत कल्पना, नए आश्चर्य, सृजनशील विचार और अलौकिक गहराई का प्रतीक है। यह दिवास्वप्न की रानी है, मिट्टी के साधारण रूप को अनोखे अर्थ देती है, और फलक, कूची, रंगों में अपने प्रभाव को दिखाती है। यह सिद्धों की वाणी, गहन अनुभूति, और रचनात्मकता का सार है।

Question 3:
‘प्रतिभा का मूल बिन्दु’ कविता का सारांश लिखिए।

Answer:
‘प्रतिभा का मूल बिन्दु’ कविता में कवि ने सैद्धांतिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है, जहाँ वे आकाशीय कल्पनाओं और अनावश्यक अनुमानों से परे रहकर जीवन के कठोर संघर्ष की महिमा का वर्णन करते हैं। उनके अनुसार, प्रतिभा निरंतर प्रयास, दृढ़ संकल्प और कठिन परिश्रम से उत्पन्न होती है।

Question 4:
प्रतिभा प्राप्त करने के लिए कवि पाठकों को क्या प्रेरणा देते हैं?

Answer:
कवि पाठकों को यह प्रेरणा देते हैं कि प्रतिभा पाने के लिए व्यक्ति को कष्ट सहने की शक्ति, अनवरत प्रयास, और संघर्ष की दृढ़ता अपनानी चाहिए। यह केवल उन लोगों में रहती है, जो कठिन तपस्या, आत्मबल और असिधारा व्रत जैसी कठोर साधना के लिए तैयार होते हैं।

III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए: Pratibhaa ka Mool Bindu

Question 1:
“कहाँ जन्म है तेरा?” मैंने पूछा जब प्रतिभा से,
“महलों में? गुलगुले गलीचों पर? गुलाब की क्यारी में?
वृद्धों की चिंता में? बच्चों की दंतहीन किलकारी में?
बोलो तुम रहती कहाँ? जानने को हम सब हैं कितने प्यासे!”

Answer:
प्रसंग:
ये पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ से ली गई हैं, जो डॉ. प्रभाकर माचवे द्वारा रचित कविता ‘प्रतिभा का मूल बिन्दु’ का अंश हैं।
संदर्भ:
इन पंक्तियों में कवि ने ‘प्रतिभा’ के जन्मस्थान को जानने की अपनी उत्सुकता को व्यक्त किया है। वे इसे निरंतर प्रयास और परिश्रम का परिणाम मानते हैं।
स्पष्टीकरण:
इन पंक्तियों में कवि प्रश्न पूछते हैं कि ‘प्रतिभा’ का जन्म कहाँ होता है। क्या यह राजमहलों में, सुंदर गलीचों पर, गुलाब के फूलों की क्यारियों में, वृद्धों के गहन चिंतन में, या बच्चों की सरल और मासूम हंसी में जन्म लेती है? कवि अपनी जिज्ञासा को इन सवालों के माध्यम से व्यक्त करते हुए ‘प्रतिभा’ के वास्तविक मूल को खोजने का प्रयास करते हैं। इन पंक्तियों में प्रतिभा के जन्म और उसके महत्व की गहन समीक्षा की गई है।

Question 2:
प्रतिभा बोली – “यातना, निरन्तर कष्ट-सहन की ताकत में
मैं बसती हूँ संघर्ष-निरत साधक में, असिधारा-व्रत में।”

Answer:
प्रसंग:
यह पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘साहित्य वैभव’ से ली गई हैं। इनका उद्धरण डॉ. प्रभाकर माचवे की कविता ‘प्रतिभा का मूल बिन्दु’ से है।
संदर्भ:
इन पंक्तियों में कवि ने ‘प्रतिभा’ के विकास और उसकी प्रकृति को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। वे समझाते हैं कि प्रतिभा किस प्रकार से आकार लेती है।
स्पष्टीकरण:
कवि के अनुसार, प्रतिभा किसी सहज प्रक्रिया का परिणाम नहीं है, बल्कि यह कठिन तप और साधना का फल है। यह लगातार कष्ट झेलने और आत्मसंघर्ष के माध्यम से ही उभरती है। प्रतिभा का जन्म कल्पना और विचार के गहन स्तर पर संघर्ष करने से होता है। यह केवल प्रयासों और अनुशासन के माध्यम से ही पाई जा सकती है। इसे प्राप्त करना तलवार की धार पर चलने जैसा कठिन कार्य है, जो दृढ़ संकल्प और समर्पण मांगता है। यह पंक्तियाँ इस बात पर जोर देती हैं कि सृजनात्मकता और मौलिकता निरंतर अभ्यास और कठिन साधना से ही संभव है।

प्रतिभा का मूल बिन्दु [Pratibhaa ka Mool Bindu]
Summary

1st PUC Hindi Chapter 20 Pratibhaa ka Mool Bindu
1st PUC Hindi Chapter 20 Pratibhaa ka Mool Bindu

इस कविता में कवि डॉ. प्रभाकर माचवे ने प्रतिभा के स्रोत का विश्लेषण किया है और यह जानने की कोशिश की है कि यह कहाँ से उत्पन्न होती है।
कवि जानना चाहते हैं कि प्रतिभा कहाँ जन्म लेती है। क्या वह महलों में? कालीनों पर? गुलाब के फूलों की क्यारी में? वृद्धों की चिंता में? या बच्चों की चिल्लाहट और किलकारियों में जन्म लेती है? कवि यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि प्रतिभा कहाँ निवास करती है।

इसके बाद, कवि स्वयं प्रतिभा के बारे में कहते हैं कि वह दिवास्वप्नों की रानी है। शिल्पी एक मिट्टी के लौंदे की ओर इशारा करता है और कहता है कि यही प्रतिभा है। चित्रकार अपने औजारों को समेटकर कला का सृजन करता है, जो यह दर्शाता है कि प्रतिभा उसमें भी मौजूद है। गायिका कहती है कि प्रतिभा दिव्य स्वर में बसती है।

क्या केवल कल्पना ही प्रतिभा की पहचान है? क्या प्रतिभा गूंथे हुए विचारों की कोमल परी है? क्या केवल नवीन विस्मय को ही प्रतिभा कहा जा सकता है? या यह एक सृजनात्मक तकनीक है? क्या प्रतिभा तांत्रिकों की भाषा है? या यह सैद्धांतिक विचारकों की कविताएँ हैं? क्या प्रतिभा अनुभूति की रसायन है? या यह गहरे जल में कांपती मछली है?

इसके बाद, कवि को स्वयं प्रतिभा से उत्तर प्राप्त होता है। प्रतिभा स्वयं कहती है कि वह निरंतर कठिनाइयों और यातना में निवास करती है। वह उस अनथक साधक में रहती है, जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए लगातार संघर्ष करता है। प्रतिभा उन लोगों में निवास करती है, जो तलवार की धार पर चलने जैसी कठिन साधना करते हैं।

प्रतिभा का मूल बिन्दु – कवि परिचय: Poet Introduction:

डॉ. प्रभाकर माचवे का जन्म 26 दिसंबर 1917 को मध्यप्रदेश के एक मध्यमवर्गीय महाराष्ट्रीयन परिवार में हुआ। 1938 में वे उज्जैन के माधव कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक बने और 1948 तक इस पद पर कार्यरत रहे। उनका लेखन क्षेत्र व्यापक और बहुमुखी था। उन्होंने हिंदी, मराठी, और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में साहित्य सृजन किया। माचवे न केवल कवि थे, बल्कि एक शोधकर्ता, अनुवादक, संपादक, कहानीकार, उपन्यासकार, समीक्षक और निबंधकार भी थे। वे ‘तार सप्तक’ के सात प्रमुख कवियों में से एक हैं।

प्रमुख काव्य रचनाएँ:
‘स्वप्नभंग’, ‘अनुक्षण’, ‘तेल की पकौड़ियाँ’, ‘मेपल’ आदि।

पद्य का आशय:
इस कविता में कवि ने प्रतिभा के मूल तत्वों का विश्लेषण किया है। उन्होंने अत्यधिक कल्पनाओं और अनुमानों से दूर रहकर जीवन के संघर्ष और निरंतर प्रयास को अपनाया है। कवि ने यह संदेश दिया है कि प्रतिभा कठिन परिश्रम और तपस्या की जननी है। यह उन व्यक्तियों में निवास करती है जो कष्ट सहने की क्षमता और आत्मसंघर्ष के लिए तत्पर रहते हैं।

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