1st PUC Hindi Chapter 2 Yuvaon se युवाओ से Notes

1st PUC Hindi Question and Answer Karnataka State Board Syllabus

1st PUC Hindi Chapter 2 Yuvaon se

Yuvaon Se (युवाओ से)

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I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :

Question 1.
स्वामी विवेकानंद का विश्वास किन पर हैं?
Answer:
स्वामी विवेकानंद का विश्वास नवीन पीढ़ी पर हैं।

Question 2.
स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श क्या है?
Answer:
त्याग और सेवा स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श हैं।

Question 3.
कौन सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य करता है?
Answer:
निस्वार्थी सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य करता हैं।

Question 4.
किस शक्ति के सामने सब शक्तियाँ दब जाएँगी?
Answer:
इच्छा शक्ति के सामने सब शक्तियाँ दब जाएँगी।

Question 5.
असंभव को संभव बनानेवाली चीज क्या है?
Answer:
प्रेम असंभव को संभव बनानेवाली चीज हैं।

Question 6.
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म कहाँ हुआ?
Answer:
कलकत्ता (कोलकत्ता) में स्वामी विवेकानंदजी का जन्म हुआ हैं।

Question 7.
सर्वधर्म सम्मेलन कहाँ आयोजित किया गया था?
Answer:
अमेरिका के चिकागो शहर में सर्वधर्म सम्मेलन आयोजित किया गया था।

Question 8.
स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम क्या था?
Answer:
नरेंद्रनाथ स्वामी विवेकानंद जी का बचपन का नाम था।

Question 9.
सर्वधर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद हिन्दु धर्म के प्रतिनिधी के रूप में कहां गए थे?
Answer:
अमेरिका के चिकागो शहर में सर्वधर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद जी हिन्दु धर्म के प्रतिनिधी के रूप में गए थे।

Question10.
जो अपने आप में विश्वास नहीं करता, वह क्या हैं?
Answer:
नास्तिक, जो पने आपमें विश्वास नही करता हैं।

Question 11.
कमजोरी किसके समान हैं?
Answer:
कमजोरी मृत्यु के समान हैं।

Question 12.
सबसे पहले हमारे तरुणों को क्या बनना चाहिए?
Answer:
सबसे पहले हमारे तरूणों को मजबूत बनना चाहिए।

Question 13.
प्रत्येक आत्मा क्या हैं?
Answer:
प्रत्येक आत्मा अव्यक्त ब्रह्मा हैं।

Question 14.
नवयुवकों को किसकी तरह सहनशील होना चाहिए?
Answer:
पृथ्वी माता की तरह नवयुवकों को सहनशील होना चाहिए।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

Question 1.
भारतवर्ष का पुनरुत्थान कैसे होगा?

Answer:
स्वामी विवेकानंद जी कहते है – भारत वर्ष का पुनरुत्थान होगा, पर वह शारीरिक बल से नहीं, बल्कि आत्म बल के द्वारा वह उत्थान शांति और प्रमे की ध्वजा लेकर। हमारी यह वृद्ध माता पुनः एक बार जाग्रत होकर अपने सिंहासन पर नवयौवनपूर्ण और पूर्व से अधिक महिमान्वित होकर विराजमान होगी। इस तरह भारत वर्ष का पुनरुत्थान होगा।

Question 2.
त्याग और सेवा के बारे में स्वामी विवेकानंद जी के क्या विचार हैं?

Answer:
त्याग और सेवा ही भारत के राष्ट्रीय आदर्श हैं। विवेकानंद जी कहते है, आपको इन धाराओं में तीव्रता उत्पन्न करनी चाहिए। शेष सारा अपने – आप ठीक हो जाएगा। हमें काम में लगजाना चाहिए। फिर देखना कि इतनी शक्ति आएगी कि उसे सँभालना सकेंगे। औरों के लिए रत्ती भर भी सोचने, काम करने से भीतर की शक्ति जाग उठेगी, और धीरे – धीरे दिल में सिंहबल आजाता हैं। इस तरह त्याग और सेवा के बारे में स्वामी विवेकानंद जी के विचार हैं।

Question 3.
स्वदेश – भक्ति के बारे स्वामी विवेकानंद जी का आदर्श क्या हैं?
Answer:
स्वामी विवेकानंद जी स्वदेश – भक्ति के बारे में कहते है – स्वदेश भक्ति में विश्वास करता हूँ। लेकिन इस संबंध में मेरा एक आदर्श ए है कि बडे या उत्तम काम करने के लिए तीन चीजों की अवश्यकता होती है, बुध्दि, और विचार – शक्ति, हम लोगों को थोडी सहायता कर सकती हैं। वह हमे अग्रसर कर देती हैं।

Question 4.
सर्वधर्म सहिष्णुता के बारे स्वामी विवेकानंद जी के विचार लिखिए।

Answer:
स्वामी विवेकानंद कहते है – मैं सभी धर्मो को स्वीकार करता हूँ और उन सबकी पूजा करताहूँ, प्रत्येक के साथ ईश्वर की उपासना करता हूँ, वे स्वयं चाहे किसी भी रूप में उपासना करते हो। मै मस्जिद में जाता हूँ, ईसाइयों के गिरिजा घर में फास के सामने घुटने टेककर प्रार्थना करता हूँ, और बौद्ध मंदिरो जाता हूँ, जंगल में जाकर हिन्दुओं के साथ ध्यान करता हूँ। इस तरह सर्व धर्म सहिष्णुता के बारे स्वामि विवेकानंद जी के विचार हैं।

Question 5.
शिक्षा के बारे में स्वामी विवेकानंद जी क्या कहते हैं?
Answer:
हमे उन विचारों की अनुभूति कर लेने की अवश्यकता है, जो जीवन निर्माण, मनुष्य – निर्माण और चरित्र निर्माण में सहायक हो। यदि हम पांच परखे हुए विचारों को आत्मसाल कर उनके अनुसार अपने जीवन व चरित्र का निर्माण कर लेते है, तो हम पूरे ग्रंथालय को कंठस्थ करने वाले की अपेक्षा से अधिक शिक्षित होते हैं।

III. संदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए।

Question 1.
यह याद रखे कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो।

Answer:
संदर्भ: प्रस्तुत वाक्य को युवाओं से इस पाठ से लिया गया हैं। इस पाठ के लेखक हैं
‘युगपुरुष’ स्वामी विवेकानंद जी।
स्पष्टीकरण : स्वामी विवेकानंद जी कहते है – तुम तो ईश्वर की संतान हो, अमर आनंद के भागी हो, पूर्ण एवं पवित्र आत्मा हो। तुम अपने आपको कभी दूषित या कमजोर नही समझना, उठो, आगे बढो, साहसी, विर्यवान बनो। देश की उन्नति का सारा उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लेलो कहते है। यह याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो।

Question 2.
‘उठो, जागो और तब तक रूको नही, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।

Answer:
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को ‘युवाओं से’ इस पाठ से लिया गया हैं। इस पाठ को लेखक है, युगपुरुष ‘स्वामी विवेकानंद जी।
स्पष्टीकरण : स्वामी विवेकानंद जी नवीन पीढी से कहते, उठो, जागो, स्वयं जागो और औरों को भी जगाओ। अपने इस मानव जन्म को सफल बनाओं ‘उत्कृष्ट जाग्रत प्राप्त पशन्निबोधत’ इस तरह कहते हुए उन्होने कहा – उठो, जागो और जब तक रुको नही, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।

Question 3.
भय से ही दुःख होता है, यह मृत्यु का कारण है तथा इसी के कारण सारी दुराई क्या पाय होता हैं।

Answer:
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को युवाओं से इस पाठ से लिये गया है और लेखक है युगपुरुष स्वामि विवेकानंद जी।
स्पष्टीकरण : स्वामी विवेकानंद जी कहते है, कि ‘सारा संसार को यदि किसी एक धर्म की ज्ञान देना चाहिए, तो वह है ‘निर्भयता’। इस एहिक जगत् में, या आध्यात्मिक जगत् में भय ही पतन का कारण हैं। कहते है ‘भय से ही दुःख होता है, यह मृत्यु का कारण है तथा इसी के कारण सारी बुराई तथा पाथ पोता हैं।

Question 4.
‘ढोंगी बनने की अपेक्षा स्पष्ट रूपसे नस्तिक बनना च्छा
Answer:
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को ‘युवाओं से’ इस पाठ से लिया गया हैं। इस पाठ के लेखक है, युगपुरुष स्वामी विवेकानंद जी।
स्पष्टीकरण : यदि ईश्वर है, तो हमें उसे देखना चाहिए, आत्मा है तो हमे उसकी अनुभूति कर लेनी चाहिए। कहते है ‘ढोंगी बनने की अपेक्षा स्पष्ट रूप से नास्तिक बनना अच्छा हैं।

Question 5.
मै तुम सबसे यही चाहता हूँ, कि तुम आत्म प्रतिष्टा, दलबंदी और ईर्ष्या को सदा के लिए छोड़ दो।

Answer:
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को ‘युवाओं से’ इस पाठ से लिया गया हैं। इस पाठ के लेखक है ‘युगपुरुष स्वामी विवेकानंद’ जी।
स्पष्टीकरण: स्वामी विवेकानंद जी हमे कहते है, संगठन को हमें अपने स्वभाव में लामा चाहिए। अपनो के विचार से सदा सहमत होने को तैयार रहो और उनसे समझोता करने की प्रयास करे, इसे ही संगठन का रहस्य मानकर ‘मै तुम सब से यही चाहत हूँ कि तुमआत्म प्रतिष्टा, दलबंदी और ईर्ष्या को सदा के लिए छोड दो’।

iv. विलोम शब्द लिखिए।।

1. आशा x निराशा
2. साधारण x असाधारण
3. स्वदेश र विदेश, परदेश
4. स्वार्थी x निस्वार्थी
5. कीर्ति x अपकीर्ति
6. शिक्षित x अशिक्षित
7. पवित्र x अपवित्र
8. जन्म x मृत्यु
9. निर्धन x धन
10. मजबूत.x कमजोर
11. धर्म x अधर्म
12. नासतिक x आस्तिक

v. समानार्थक शब्द लिखित।

1. नवीन = नया
2. पुरोहित = पंडति, ब्राह्मण
3. जंगल = वन
4. पहाड = पर्वत
5. ईश्वर = भगवान
6. साहस = धैर्य, हिम्मत
7. तरुण =युवा
8. अधिक = ज्यादा

vi. निम्नलिखित अनुछेद पढ़कर उस पर अधीरत प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

हमेशा बढ़ते चलो। मरते दम तक गरीबों और पददलितों के लिए सहानुभूति – यही हमारा आदर्श वाक्य हैं। वीर युवको, बढे चलो। ईश्वर के प्रति आस्था रखो। किसी चालबाजी की आवश्यकता नही, उस से कुछ नही होता दखियों का दर्द समझो और ईश्वर से सहायता की प्रार्थना करो – वह अवश्य मिलेगी। युवको मै गरीबो, मूरों और उप्पीडितों के लिए इस सहानुभूति और प्राणायाम प्रयत्न को थाती के तोरे पर तुम्हे अर्पण करना हैं। प्रतिज्ञा करो कि अपना सारा जीवन इन तीस करोड़ लोगों के उद्धार कार्य में लगादेगे, जो दिनो दिन अवनति के गर्व में गिरते जा रहे हैं। यदि तुम सचमुच मेरी संतान हो, तो तुम किसी वस्तु से न डरोगे, न किसी बात पर रुकोगे। तुम सिंहतुल्य होगे। हमे भारत को और पूरे संसार को जगाना हैं।

vii. प्रश्न

Question 1.
हमारा आदर्श वाक्य क्या है?
Answer:
गरीबो व पददलितों के लिए सहानुभूति – यही हमारा आदर्श हैं।

Question 2.
किसके प्रति आस्था रखनी चाहिए?
Answer:
ईश्वर के प्रति आस्ता रखनी चाहिए।

Question 3.
किसकी अवश्यकता नही हैं?
Answer:
किसी चालबाजी की अवश्यकता नही हैं।

Question 4.
तुम किस के समान होगे?
Answer:
तुम सिंह के समान होगे।

Question 5.
हमें किसे जगाना है?
Answer:
हमे भारत के और पूरे संसार को जगाना हैं।

Yuvaon se Summary

yuvano se युवाओ से
yuvano se युवाओ से

“युवाओं से” का सारांश:

यह पाठ युवाओं को संबोधित करता है और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। इसमें बताया गया है कि युवावस्था जीवन का वह समय होता है, जब व्यक्ति अपने भविष्य की दिशा निर्धारित करता है। इस समय युवाओं को अपनी ऊर्जा और उत्साह का सही दिशा में उपयोग करना चाहिए।

लेखक ने इस पाठ में युवाओं को कर्तव्यनिष्ठ, आत्मविश्वासी, और संयमी बनने की सलाह दी है। उन्हें अपने लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत और धैर्य का पालन करना चाहिए। साथ ही, यह भी बताया गया है कि युवाओं को अपने समाज और देश के प्रति भी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए।

पाठ का मूल संदेश यह है कि युवा अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में मोड़कर न केवल अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं, बल्कि अपने समाज और देश की प्रगति में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

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