1st PUC Hindi Question and Answer: Todti Pathhar
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Karnataka 1st PUC Hindi Textbook Answers—Reflections Chapter 17
Todti Pathhar Questions and Answers, Notes, and Summary
1st PUC Hindi Chapter 17
Todti Pathhar
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I.एक शब्दा में उत्तर लिखिए: Todti Pathhar
Question 1.
नारी कहाँ पत्थर तोड़ती थी?
Answer:
नारी इलाहाबाद की सड़कों पर पत्थर तोड़ने का कार्य करती थी।
Question 2.
पत्थर तोड़ने वाली नारी के तन का रंग कैसा था?
Answer:
उस नारी के शरीर का रंग गहरा सांवला था।
Question 3.
नारी बार-बार क्या करती थी?
Answer:
नारी अपने हाथ में बड़ा हथौड़ा लेकर बार-बार पत्थर पर वार करती थी।
Question 4.
नारी किस समय पत्थर तोड़ रही थी?
Answer:
नारी दोपहर की कड़ी धूप में पत्थर तोड़ने में व्यस्त थी।
Question 5.
नारी के माथे से क्या गिर रहा था?
Answer:
नारी के माथे से लगातार पसीने की बूंदें टपक रही थीं।
Question 6.
‘तोड़ती पत्थर’ कविता के रचनाकार कौन हैं?
Answer:
‘तोड़ती पत्थर’ कविता के रचनाकार सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।
अतिरिक्त प्रश्नः Todti Pathhar
Question 7.
सड़क पर कौन-सी परिस्थिति झुलसा रही थी?
Answer:
सड़क पर झुलसाने वाली तेज लू बह रही थी।
Question 8.
नारी ने किस ओर अपनी दृष्टि डाली?
Answer:
नारी ने कवि की ओर और फिर पास के भवन की ओर देखा।
Question 9.
एक क्षण के बाद किसे कंपकंपी महसूस हुई?
Answer:
एक क्षण बाद पत्थर तोड़ने वाली महिला अचानक कांप उठी।
Question 10.
नारी के हाथों में क्या था?
Answer:
नारी के हाथों में एक भारी हथौड़ा था।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए : Todti Pathhar
Question 1.
इलाहाबाद के रास्ते पर पत्थर तोड़ती महिला का वर्णन कीजिए।
Answer:
इलाहाबाद के रास्ते पर एक महिला पत्थर तोड़ने का कठिन कार्य कर रही थी। वहाँ उसके आराम करने के लिए कोई छायादार पेड़ नहीं था। उसका रंग सांवला था, लेकिन उसका शरीर यौवन से भरा हुआ प्रतीत होता था। उसकी आँखें काम में व्यस्त होने के कारण नीचे झुकी थीं। वह बड़े हथौड़े से लगातार पत्थरों पर प्रहार कर रही थी।
Question 2.
नारी किन हालातों में पत्थर तोड़ने का काम कर रही थी?
Answer:
एक गरीब और असहाय महिला इलाहाबाद के मार्ग पर पत्थर तोड़ रही थी। वहाँ आराम देने वाला कोई छायादार स्थान नहीं था। दोपहर की चिलचिलाती धूप और तेज गर्मी में वह काम कर रही थी। तपती गर्म हवा और उड़ती धूल ने स्थिति और भी कठिन बना दी थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में वह महिला पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही थी।
Question 3.
‘तोड़ती पत्थर’ कविता का सारांश अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए।
Answer:
‘तोड़ती पत्थर’ कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने इलाहाबाद की एक सड़क के किनारे पत्थर तोड़ती एक मजदूर महिला की वास्तविक और संवेदनशील तस्वीर खींची है। कविता में तपती दोपहर, जलती हुई धरती, और उड़ती हुई धूल के बीच महिला का संघर्ष दिखाया गया है। वहाँ कोई छाया देने वाला पेड़ नहीं था, लेकिन वह महिला बिना रुके बड़े हथौड़े से पत्थर तोड़ने में लगी हुई थी। कवि ने उस महिला की कठिन परिस्थितियों में किए जा रहे श्रम के महत्व को उजागर किया है।
अतिरिक्त प्रश्नः Todti Pathhar
Question 4.
पत्थर तोड़ने वाली असहाय महिला के प्रति कवि अपनी सहानुभूति कैसे व्यक्त करते हैं?
Answer:
कवि पत्थर तोड़ती महिला की दयनीय स्थिति देखकर सहानुभूति से भर जाते हैं। दोपहर की प्रचंड गर्मी और लू के बीच, बिना किसी छाया के, महिला कठिन परिश्रम कर रही थी। चारों ओर गर्म हवाओं और धूल का वातावरण था, लेकिन वह महिला निरंतर कार्य में लगी हुई थी। कवि इस असहाय महिला के संघर्ष को देखकर भावुक हो जाते हैं और उसकी स्थिति को मार्मिक रूप में व्यक्त करते हैं।
III. संसदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए : Todti Pathhar
Question 1.
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार –
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।
Answer:
प्रसंग:
यह पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘साहित्य वैभव’ की कविता ‘तोड़ती पत्थर’ से ली गई है। इस कविता के रचनाकार सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।
संदर्भ:
इन पंक्तियों में निराला जी ने इलाहाबाद की सड़क पर पत्थर तोड़ने वाली एक महिला की दयनीय स्थिति का वर्णन किया है।
स्पष्टीकरण:
तपती दोपहर में कवि ने एक स्त्री को देखा, जो अपने हाथ में बड़ा हथौड़ा लेकर लगातार पत्थरों पर चोट कर रही थी। स्त्री जिस स्थान पर काम कर रही थी, वहाँ कोई छाया नहीं थी, जिससे वह राहत पा सके। वहीं, उसके सामने एक भव्य भवन था, जिसके चारों ओर सुंदर वृक्षों की कतारें थीं।
यह चित्रण समाज में व्याप्त आर्थिक और सामाजिक असमानता को उजागर करता है। कवि ने दिखाया कि एक ओर मेहनतकश गरीब महिला कठिन परिश्रम में लगी है, तो दूसरी ओर धनाढ्य वर्ग ऐश्वर्य और सुविधाओं का उपभोग कर रहा है। यह कविता सामाजिक विषमता और श्रमिक वर्ग की कठिनाइयों पर ध्यान केंद्रित करती है।
Question 2.
चढ़ रही थी धूप
गर्मियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप।
उठी झुलसाती हुई लू
Answer:
प्रसंग:
यह पंक्तियाँ *‘साहित्य वैभव’* की कविता *‘तोड़ती पत्थर’* से ली गई हैं, जिसके रचनाकार सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।
संदर्भ:
इन पंक्तियों में कवि ने गर्मियों की दोपहर में पत्थर तोड़ने वाली नारी की कठिन परिस्थितियों का वर्णन किया है।
स्पष्टीकरण:
तपती धूप और झुलसाती लू के बीच महिला बिना रुके काम में लगी हुई थी। उसका परिश्रम और धैर्य विपरीत परिस्थितियों में भी अटूट था। कवि उसकी लगन और संघर्ष से प्रभावित होते हैं और उसकी मेहनत का आदर करते हैं।
Question 3.
देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार।
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं।
Answer:
प्रसंग:
यह पंक्तियाँ *‘साहित्य वैभव’* की कविता *‘तोड़ती पत्थर’* से ली गई हैं, जिसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।
संदर्भ:
इन पंक्तियों में कवि ने मजदूर महिला की दयनीय स्थिति और पीड़ा का वर्णन किया है।
स्पष्टीकरण:
मजदूर महिला ने कवि को देखा और फिर भव्य भवन की ओर नजर डाली, जहाँ कोई नहीं था। उसकी नजरें पीड़ा से भरी थीं, लेकिन वह शोषण को सहने की आदी हो चुकी थी। उसके आँसू सूख चुके थे, और उसकी दृष्टि में असीम धैर्य झलक रहा था।
तोड़ती पत्थर [Todti Pathhar]
Summary
इस कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” एक असहाय पत्थर तोड़ने वाली महिला की कठिनाइयों का भावनात्मक चित्रण करते हैं और बताते हैं कि वह किसी भी सुविधा या संसाधन से वंचित है।
कवि एक दिन इलाहाबाद की सड़क पर चलते हुए उस श्रमिक को पत्थर तोड़ते हुए देखते हैं। वहां कोई छायादार पेड़ नहीं था, जहां वह बैठ कर आराम कर सकती। वह काली त्वचा वाली थी, लेकिन जवान थी। उसकी आँखें पूरी तरह से अपने काम में डूबी हुई थीं, वह पत्थर तोड़ने में लगी हुई थी।
हाथ में भारी हथौड़ा पकड़े वह पत्थरों पर चोट कर रही थी। उसके सामने ऊँची-ऊँची इमारतें और सड़क किनारे लगे पेड़ थे। यह गर्मी का मौसम था। दिन का तापमान बढ़ रहा था। सूरज तेज़ी से तप रहा था, और तीव्र हवा चल रही थी। पृथ्वी कपास की तरह जल रही थी, और धूल हर जगह उड़ रही थी। दोपहर का समय था, फिर भी वह काम करती जा रही थी और पत्थर तोड़ती जा रही थी।
उसे कवि को अपनी ओर देखते हुए महसूस हुआ और फिर उसने सामने की इमारत की ओर देखा। जब उसे वहाँ कोई नहीं दिखाई दिया, तो उसने फिर से कवि को देखा। कवि की ओर देखते हुए भी वह अपनी दयनीय स्थिति से संकोच नहीं कर रही थी। उसकी हृदय की तंतुओं की आवाज़, जो नहीं बज रहे थे, कवि अपनी कल्पना से सुन पा रहे थे जैसे वह एक सजाए हुए सितार से निकल रही हो। उसकी माथे से एक बूँद पसीने की गिरी। कुछ समय के लिए दूसरे दिशा में देख कर, उसने फिर से अपना ध्यान अपने काम पर केन्द्रित किया।
तोड़ती पत्थर – कवि परिचय: Todti Pathhar Poet Introduction:
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 1896 ई. में पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नगर में हुआ। बचपन में ही माता का निधन हो गया। बाद में पत्नी और पिता के असामयिक निधन तथा गरीबी और तिरस्कार के कारण उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। 1961 ई. में उनका निधन हो गया।
प्रमुख रचनाएँ:
‘परिमल,’ ‘गीतिका,’ ‘अनामिका,’ ‘अर्चना,’ ‘आराधना,’ ‘कुकुरमुत्ता,’ ‘राम की शक्तिपूजा,’ और ‘तुलसीदास’ आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। उनके काव्य में विषय-वस्तु और शिल्प की विविधता दिखाई देती है। मानवतावाद, भक्ति, श्रृंगार, और प्रकृति के भावों का सुंदर चित्रण उनकी काव्य-रचना में मिलता है। उनकी भाषा में ओज, प्रवाह, और गहन संवेदना है।
कविता का आशय:
इस कविता में कवि ने एक असहाय और साधनहीन महिला का मार्मिक चित्रण किया है, जो तपती गर्मी में सड़क पर पत्थर तोड़ रही है। कवि उसकी संघर्षपूर्ण स्थिति को देखकर गहरी सहानुभूति प्रकट करते हैं। एक ओर धनाढ्य वर्ग ऊँचे भवनों में आराम कर रहा है, तो दूसरी ओर यह महिला प्रचंड धूप में कठोर श्रम कर रही है। यह कविता समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता को उजागर करती है और कवि के प्रगतिवादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है। यह रचना ‘अनामिका’ काव्य-संग्रह से ली गई है।